अपुष्पक पौधे (cryptogames plants):- ब्रायोफायटा
पौधे का यह वर्ग अपुष्पक (cryptogames) पौधे के तीन भागों थैलोफायटा, ब्रायोफायटा एवं टेरिडोफायटा के क्रम में क्रमशः दूसरे भाग ब्रायोफायटा में आता है।
ब्रायोफाइटा को पादप जगत में उभयचर भी कहा जाता है क्योंकि ये भूमि और जल दोनों पर जीवित रहते है , परन्तु लैंगिक जनन के लिए जल पर निर्भर होते है। इनमें वास्तविक संवहन उत्तको (xylem and phloem) का अभाव होता है। आमतौर पर ब्रायोफाइट्स नम और छायादार स्थान जैसे नम दीवारें, गीली मिट्टी, लकड़ी के टुकड़े, नदी के किनारों पर गीला पेड़ की टुकड़े, नम चट्टानें, बैंकों और पूल के किनारों पर पाये जाते हैं। इसकी कुछ प्रजातियाँ पानी में पाई जाती हैं। ब्रायोफाइट्स की कुछ प्रजातियां एपिफाइट्स (epiphytes)
और कुछ सैप्रोफाइट (saprophytes) हैं।
ब्रायोफायटा समूह के पौधे नम दीवारों तथा गीली ज़मीन पर उगती है और पेड़ों के छालों पर सुन्दर मखमली हरे रङ्ग की दिखाई पड़ती है। इस समूह के पौधें बनावट में थैलोफायटा समूह के पौधे से अधिक जटिल होते है। ब्रायोफायटा उच्च श्रेणी का पौधा होते है। इसके निम्न उपवर्ग है।
1. प्रहरिता (Liverworts) यह निम्न श्रेणी के ब्रायोफायटा का एक उपसमूह है। ऐसा ब्रायोफायटा जो भूशायी, हरे, चिपटा (thallus) तथा शाखीय (branched) होते हैं लेकिन जड़, तना और पत्तियों में बटें होते हैं। इन पौधे की नीचे की सतह (under surface) पर जड़ की तरह कुछ सरंचनाए होती है। हरे रंग के होने के कारण प्रहरिता कहलाते है। जैसे :- रिकसिया (Riccia), मार्केंशिया (Marchantia)
2. हरिता (Moss) :- उच्च श्रेणी के ऐसे ब्रायोफायटा जिनके पौधे का शरीर मुलांग यानी अक्ष (axis), स्तम्भ (stem) पत्तियाँ तथा कुछ जड़स्वरूप सरंचनाओं में विभक्त (differentiate) रहती है। जैसे :- फ़्यूनेरिया (Funaria) और पॉलीट्राइकम ((Polytricham) इत्यादि उदाहरण है।
3. होर्नवॉर्ट (Hornwort) :- ये पौधे लिवेरवर्ट्स के जैसे ही होते है। इनका शरीर शुकाय (thallus) और अनियमित रूप से शाखित होता है। शुकाय के निचली सतह से बहुत से मुलांग जड़ निकले रहते है। जैसे एंथोसिरॉस (Anthocros)
3. टेरिडोफायटा (pteridophyta)
नम और छायादार जगहों पर उगने वाले उच्च श्रेणी के ऐसे जटिल अपुष्पीय (cryptogames) पौधे जिनके शरीर मे तना (stem), पत्तियाँ (leaves) और जड़े (roots) तो विकसित होती है लेकिन फूल-फल धारण नही करते है। पौधे का यह समूह ब्रायोफायटा से अधिक जटिल होते है। ये पुष्पयुक्त पौधे से अलग होते हैं टेरिडोफायटा फूल,फल और बीज धारण नही करते है। बीजाणु (spores) के द्वारा ये अपनी संख्या में वृद्धि करते है। ये अपनी पत्तियों, जिन्हें बीजाणु-पर्ण कहते है पर बीजाणु (spores) धारण करते है। इनकी लगभग 10,500 जातियां पायी जाती है।
जैसे :- फ़र्न (fern), लाइकोकोपोडियम (lycopodium), सिलेजिनेला (Selaginela) इत्यादि।
टेरिडोफाईटा के उपसमूह और उदाहरण
1. (क) मुग्दरमॉस (Clubmosses) :- ऐसे टेरिडोफाईटा जो भूमि की सतह पर रेंगने वाले पौधे जैसे होते है। इनके आकाशीय प्ररोहों (aerial shoots) के शीर्ष पर बीजाणु-पर्ण के समूह का एक सरंचना बनाते है। जिसे शंकु (cone) कहते है। उदाहरण :- लाइकोपोडियम (Lycopodium) और सिलैजिनेला (Selaginela)
2. सिलोफाइट (Psilophytes) :- यह टेरिडोफाईटा के सबसे निचली श्रेणी का उपसमूह है। इस समूह के अधिकांश पौधे विलुप्त हो चुके है। ये केवल फॉसिल के रुप मे पाये जाते है। वर्तमान ने जीवित रूप में दो प्रजाति सिलोटम (Psilotum) और मेसिटेरिस (Tmesipleris) प्राप्त होते हैं। यह बेलनाकार तथा हरा रंग का होता है।
3. फ़र्न (Ferns) :- इस समूह के पौधे अपुष्पीय होते है लेकिन इसमें तना, पत्तियाँ और जड़ उपस्थित रहते है। ये पौधे अपना पुनरुत्पादन बीजाणु-पर्ण (spores) के द्वारा करते है।
कुछ फर्न पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, खुले रॉक के दरार से बढ़ते हैं और वन-वनस्पति के आगमन से पूर्व खुले दलदल और दलदल में पाये जाते है। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में सबसे प्रसिद्ध फ़र्न जीनस, Pteridium (कोष्ठक) विशेष रूप से पुराने क्षेत्रों या साफ़ किए गए जंगलों में पाया जाता है, जहां अधिकांश स्थानों पर अक्सर वुडी वनस्पति द्वारा बढ़ते है। उदाहरण :- टेरिस (Pteris), ड्रायोप्टोटेरिस (Dryopteris), एड़ीएण्टम (Adiantum)।