राग और गायन-काल
राग शब्द की उत्पति ‘रज में हुई है जिसका अर्थ होता है, प्रसन्न करना। भारतीय संगीत की बुनियाद राग है। प्रत्येक राग के विभिन्न लक्षण एवं गायन काल होते है। प्रत्येक राग के मनुष्य के शरीर और मन मे अलग अलग प्रभाव पड़ता है। यदि किसी राग को सही तरीके से गाया जाता है तो वह जीवंत हो उठता है। मुख्य राग और उनके गायनकाल निम्नाकित है।
राग यमन :-गायनकाल–रात्रि का प्रथम प्रहर है। इसका पुराना नाम कल्याण है। मुगलों के समय इसे यमन कहकर बोला जाना लगा है। प्रिसिद्व भारतीय अभिनेत्री मधुबाला को मिस यमन कहा जाता है।
राग बिलावल :- गायनकाल प्रात:काल है। भारत के राष्ट्रीय गान ‘जन-गण-मन’ इसी राग में गाया जाता है।
राग खमाज :- इसमें गजलें, ठुमरी एवं खयाल गाये जाते है। यह चंचल प्रकृति की श्रृंगार से सजी हुई है। रात्रि प्रहर की प्रिसिद्व राग है।
राग भैरव :-प्रात:कालीन गाया जाने वाला एवं गम्भीर प्रकृति का राग है। इस राग में भक्तिमय गानें गाये जाते है। इस राग में करुण रस भरी हुई गंभीर प्रकृति है।
काफी राग :- होली के मौसम में रात्रि में गाया जाता है।
राग आसावरी :-दिन के दूसरे पहर में गाया जाता है।
राग भैरवी :- यह सरल एवं लोकप्रिय राग प्रात:काल में गाया जाता है।
राग भूपाली :- रात्रि के प्रथम प्रहर में गाया जाता है।
राग देस :- रात्रि के दूसरे प्रहर में गाया जाता है।
राग विहाग :- रात्रि के दूसरे प्रहर में गाया जाता है।
राग वागश्री :- मध्य रात्रि में गाया जाता है।
राग दीपक :- यह एक ऐसा राग है जिसके गाने से दीपक ही नही पूरे तन-बदन में भी आग लग सकती है। तानसेन इस राग के बहुत बड़े गायक है।