भारत का अरबो के साथ व्यापारिक सबंध और उसके प्रभाव
मुस्लिम आक्रमण तथा उसका प्रभाव
भारत मे जिस वक्त गुप्त साम्राज्य का पतन हो रहा था और भारत मे केन्द्रीय सत्ता कमज़ोर हो रही थी उस समय इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मोहम्मद का जन्म 571 ई. में अरब के कुर्रेश जाती में हुआ था। इस्लाम की उत्तपत्ति इसी अरब भूमि में हुई।
* 622 ई. में मोहम्मद आत्म-रक्षा के लिए मक्का से मदीना गए और अपने विरोधियों के दमन करने के उद्देश्य से एक सेना तैयार किया। कुछ ही समय मे उन्होंने सम्पूर्ण अरब पर अपना अधिकार कर लिया। अरबों को एकतासूत्र में पिरोकर एक धर्म के जोश में भर दिया। मोहम्मद ने दार्शनिक उपापोह में न पड़कर एक सीधे साधे धर्म को जन्म दिया। उनके अनुसार, ईश्वर एक है और मुहम्मद उनके पैगम्बर है। इस धर्म को मानने वाले निम्नलिखित पाँच सिद्धान्तों को मूल रूप से विश्वास करते है।
i. कलमा पढ़ना( कि ईश्वर एक है),
ii नमाज़ पढ़ना
iii रमज़ान के महीने में रोजा रखना,
iv जकात (अपनी आय का ढ़ाई प्रतिशत दान में देना) और
v हज करना।
मोहम्मद मूर्तिपूजा के विरोधी थे। उन्हें मक्का छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ा था इस घटना को हिज़रत कहते है। यथरिव में आकर मोहम्मद रुके थे इसलिए उस नगर का नाम मदिनतूल्लवी (नवी का नगर) पड़ा। मोहम्मद के चार उत्तराधिकारी क्रमशः खलीफा अबूबकर-६३३-३४ ई., उमर- ६३४-४४ ई., उस्मान- ६४४-५६ ई. और अली- ६५६-६६१ ई. उनसे प्रेरित थे।
मोहम्मद का मक्का से मदीना भागना एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस घटना को हिज़रत कहते हैं। 622 ई. से ही हिज़री सन् का आरम्भ हुआ।
अरब के लोग भारतीय समुन्द्र के माध्यम से भी व्यापार करते थे। इस्लाम धर्म की उत्त्पत्ति के पश्चात ये व्यापारी इस्लाम धर्म के प्रचारक बन गए। अरबी लोगों की समुन्द्र की शक्ति परमान चढ़ गई थी। खलीफा उमर के वक्त अरबों ने भारत के पश्चमी तट पर समुंद्री हमले किये जिसे पुलकेशिन द्वितीय ने निरस्त कर दिया था।
अरबो का भारत से बहुत पुराना व्यापारिक सम्बंध रहा था। मालाबार तटों पर अरब के व्यापारी अपने जहाज़ और पानी वाले बेड़े, मसालों, मेवाओं और दूसरी चीज़ें खरीद फरोख्त के लिए लाया करते थे।
पश्चमी तट पर अवस्तिथ खंबात (कैम्बे) खाड़ी से लेकर दक्षिण के चोल, सोपारा, कल्याण इत्यादि स्थानों पर अरबों की बस्तियाँ थी। अरबों में एकता स्थापित होने के बाद उन्होंने हिन्द महासागर का पूरा व्यापार अपने अधीनस्थ कर लिया और अरब के सौदागरों ने मालाबार तट (वर्तमान में केरल राज्य में है।) पर इस्लाम धर्म का प्रचार करना शुरू कर दिया। मालाबार के तटीय इलाकों के पास एक राज्य था कोडुनगल्लूर और यहां चेरामन राजाओं का शासन था। ये ब्राह्मण वंश के थे। राजा पेरूमल अरब दूतों के सलाह पर मक्का भी गए थे। जेद्दा में पैगंबर मोहम्मद से मिले थे। उनके उपदेशो के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। पैगंबर मोहम्मद ने उसे ताजुद्दीन नाम दिया। केरल स्थित अपने राज्य लौटते हुए पेरूमल उर्फ ताजुद्दीन ने जेद्दा के राजा की बहन से शादी भी की थी। पेरुमल के साथ मलिक इब्न दीनार की अगुआई में मोहम्मद साहब के कुछ अनुयायी भी थे।
नौवीं शताब्दी के अंत के समय मालाबार के राजा चेरामन पेरूमल मुस्लिम बन गया और भारत मे सवर्प्रथम अरबों को अपना धर्म विस्तृत करने की सुविधाएं दी थी। अरब सौदागरों का प्रथम बेड़ा भारतीय तट पर 636 ई. में आया था।
अरब के व्यापारी भारतीय महिलाओं से विवाह भी करने लगे, इस मामलों में बल्लभी के राजा और कालीकट के राजा जमोरिन ने बहुत मदद की। मालाबार तट पर अरबो के उपनिवेश बसने लगे और अरब लोगों ने खंबात, कालीकट इत्यादि स्थानों पर बसने लगे। यहाँ पर उन्होंने मस्ज़िद बनाई। अरब के बाहर प्रथम मस्ज़िद कोडुनगल्लूर के मालाबार के राजा पेरूमल के सहायता से चेरामन जुमा मस्जिद भारत की प्रथम जुमा मस्जिद है। इस मस्जिद में हिन्दू और मुस्लिम दोनो कला का नमूना देखने को मिलता हैं। चेरामन जुमा मस्जिद केरल कोडंगलूर तालुक के मेथला गांव में स्थित है। मालाबार तट पर स्थानीय जातियों ने इस्लाम धर्म स्वीकार करना शुरू कर दिया। कट्टर ब्राह्मण के कारण भारतीय संस्कृति का लचीलापन समाप्त हो गया और उनमें संकीर्णता आ गयी थी। भारतीय संस्कृति में ऊंच-नीच का भेद बढ़ गया था। द्विजेतर जातियों के साथ अमानुषिक व्यवहार किया जाता था। पददलित लोग इस्लाम धर्म की उदारता से आकृष्ट होते चले गए और सहर्ष इस्लाम धर्म को स्वीकार करने लगे। इस्लाम धर्म मे समानता की भावना थी।