आर्य कौन थे
आर्य कौन थे
आर्य आल्पस पर्वत के पूर्वी क्षेत्र यूरेशिया के निवासी थे। इनकी मातृभाषा संस्कृत थी।उनका प्रमुख धन्धा पशुचारण था। वे घोड़ों का प्रयोग करते थे। आर्य कई झुण्डों में मध्य एशिया से ईरान होते हुए भारत आए। ईरान के प्रमुख धर्मग्रन्थ जेन्दाअवेस्ता तथा ऋग्वेद में बहुत सारी समानताएं हैं। दोनों पुस्तकें कुछ देवताओं और सामाजिक वर्गों के लिये समान शब्दों का प्रयोग करती हैं।
इराक में मिले लगभग 1600 ई०पू० के कस्सी अभिलेखों में तथा 1400B.C. के मितानी अभिलेखों में जो कुछ आर्य नामों का उल्लेख है, उनसे संकेत मिलता है कि ईरान से आर्यों की एक शाखा पश्चिम की ओर चली गयी थी।
• संस्कृत में ऋग्वेद के पूर्व की किसी रचना का उपलब्ध नहीं होना, इस भाषा तथा इसके बोलने वालों का बाहर से आना स्वभाविक सा लगता है। पुरातत्व में आर्यों के आगमन से संबंधित किसी स्पष्ट प्रमाण का नहीं होना आर्यों के आगमन के सिद्धान्त पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। आर्यों के किसी खास प्रजाति के होने की धारणा अप्रामाणिक मानी जा चुकी है।
भाषा की समानता के आधार पर इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है जिसे निर्विवाद रूप से नहीं माना जा सकता। एक भाषा दूसरी भाषा को किसी अन्य रूप से भी प्रभावित कर सकती है।
वैदिक काल का निर्धारण में विद्ववानों ने अपना अलग अलग मत रखा है।
स्वामी दयानन्द :- सृष्टि के प्रारभ से
तिलक :- 6000 ई० पू० से 4000 ई० पू०
याकोबी :- 4500 ई० पू० से 2500 ई० पू०
मैक्समूलर :- 1200 ई० पू०
आर्यों का भारत आगमन
आर्य सर्वप्रथम पंजाब और अफगानिस्तान के क्षेत्र में आकर बसे थे। आर्यों ने अगले पड़ाव के रूप में कुरुक्षेत्र के निकट के प्रदेशों पर कब्जा कर उस क्षेत्र का नाम ब्रह्मावर्त रखा था।
ब्रह्मावर्त से आगे बढ़कर आर्यों ने गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र एवं उसके नजदीक के क्षेत्रों पर कब्जा कर उस क्षेत्र का नाम ‘ब्रह्मर्षि देश’ रखा था। ऋग्वेद में करीब 25 नदियों का जिक्र मिलता है, जिनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नदी सिंधु का वर्णन कई बार आया है।
आर्य अफगानिस्तान से होते हुए भारत आए थे, प्रमाण स्वरूप वहाँ की नदियों; जैसे-कुंभा(काबुल), सुवास्तु (स्वात), कुर्मू (कुर्रम) तथा गोमती (गोमल) की चर्चा वैदिक साहित्यों में मिलती है। ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थल के लिये सर्वत्र सप्तसिन्धवः प्रदेश का वर्णन है, जिसका तात्पर्य पंजाब की सात नदियों से है।
सिंधु नदी उनकी सबसे महत्वपूर्ण नदी थी, जिसकी चर्चा बड़े ही ओजस्वी भाषा में की गयी हैं।
वैदिक काल-निर्धारण
आर्य भारत में लगभग 1500 ई० पू० में आए। हालाँकि एक से अधिक बार में आर्यों के कई समूह भारत आये, अत: इनके आगमन का एक निश्चित काल-निर्धारण करना मुश्किल है।
चूँकि सिंधु सभ्यता के पतन में आर्य एक महत्वपूर्ण कारण माने जाते हैं, अत: आर्यों का प्रथम समूह संभवत: 1700 ई० पू० के आसपास भारत आया। अनेक वर्गों में विभक्त भारतीय आर्यो में पंचजन्य बहुत ही प्रिसिद्व थे। पंचजन्य में आर्यो के नाम – पुरू, यदु,अणु, तुर्वस और द्रुह्यु है। प्रारंभ में आर्य अनेक कबीलों में बटें हुए थे इन कबीलों को ही ” जन ” कहा जाता था। पंचजन्य संगठित थे। परन्तु वे आपस मे हमेशा लड़ते रहते थे। इन्ही संघर्षों में एक युद्ध ” दशराज्ञ-युद्ध ” था जो परुषणी नदी के तट पर लड़ा गया था। विश्वामित्र के सलाह पर दस राजाओं के नेतृत्व में एक संघ बना कर अनेक जनों ने भरतों के राजा ” सुदास ” पर आक्रमण किया था, किंतु सुदास ने उन्हें पराजित कर दिया था।
विश्वामित्र को जब भरतवर्ष के कुलपुरोहित के पद से हटा दिया गया था तो विश्वामित्र ने इसे अपमान समझा और बदला लेने की भावना से ही उन्होंने इस युद्ध की रचना की थी। विश्वामित्र के स्थान पर वशिष्ठ को कुलपुरोहित का पद दिया गया था।
आर्यो को अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए अनार्यों से युद्ध करना पड़ा था। अनार्यो जातियों में किकट, पिशाच, शिश्रु, अज़, यक्षु इत्यादि नामों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। अनार्य राजाओ में “मेद” बहुत ही प्रिसिद्व था। शनै शनै आर्यो ने सभी अनार्य राजाओ को अपने पराक्रम के बल पर पराजित कर दिया और उनके प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया।