स्वस्थ दाँत तो स्वस्थ सौंदर्य

अनेको कशेरुको प्राणी में दाँत पाये जाते है। एक पुरानी कहावत है – ‘स्वस्थ दांत तो स्वस्थ आंत’। स्वास्थ्य, सोंदर्य एवं संबंधों के माधुर्य के लिए स्वस्थ, सुन्दर, चमकते दांत जरूरी हैं। एक व्यसक मानव में बत्तीस दाँत पाये जाते है। मनुष्य में दो प्रकार के दाँत निकलते है। 1. प्रथम: -अस्थायी दांत
अस्थायी दांत जो पाँच वर्ष तक उम्र तक निकलते है। जिसे दूध के दांत भी कहा जाता हैं। दूध के दांत तीन प्रकार के होते हैं। इसकी संख्या 20 होती है।
2. द्वितीय:-स्थायी दांत :-
दूध के दांत धीरे धीरे टूट जाते है उसके जगह पर नए दांत निकलते है जिसे स्थायी दांत कहते है। इसकी संख्या 32 होती हैं। ये चार प्रकार के होते है। 1. कृन्तकः (INCISOR) , 2. रदनक (CANINE), 3.अर्गचवर्णक (PRE-MOLAR), 4. चवर्णक (MOLAR)
1. कृन्तकः (INCISOR) :- इनकी संख्या 8 होती है। चार ऊपरी जबड़े में तथा चार निचले जबड़े में होते
हैं। यह छेनी के समान शिखर वाले दांत होते हैं जो भोजन को काटने या कुतरने का काम करते हैं। 2. रदनक (CANINE) :- इनकी संख्या 4 होती है। 2 दांत ऊपरी जबड़े में तथा 2 दांत निचले जबड़े में होते हैं। यह कृंतक दांतो के पार्श्व (नज़दीक) पाए जाते हैं। इनके शिखर नुकीले होते हैं। यह भोजन को चीरने-फाड़ने का कार्य करते हैं तथा साथ ही कठोर भोजन को पकड़ने का कार्य भी करते हैं। 3.अर्गचवर्णक (PRE-MOLAR) ;- इनकी संख्या 8 होती है। 4 दांत ऊपरी जबड़े में तथा 4 दांत निचले जबड़े में होते।हैं। यह रदनक दांतो के पाश्श्व (बगल) में पाए.जाते हैं। इनके शिखर चपटे होते हैं। अर्थात दो दन्ताग्र होते हैं। इनका मुख़्य.कार्य भोजन को पीसना होता है। 4. चवर्णक (MOLAR) :- इनकी संख्या 12 होती है। 6 दांत ऊपरी जबड़े में तथा 6 दांत निचले जबड़े में होते हैं। यह रदनक दांतो के पाश्श्व में पाए जाते हैं। इनके शिखर भी चपटे होते हैं। ये 3-5 दन्ताग्र बनाते हैं। दन्ताग्र का मतलब दांत के ऊपर शिखर पर पाए जाने उभार । ये दांत चौड़े और मजबूत होती है। इनका मुख्य कार्य भोजन को दलना या पीसना होता है।
पांच वर्ष की उम्र तक 85 प्रतिशत बच्चों के दांत खराब हो जाते हैं। साथ ही 16 वर्ष से कम उम्र के अधिकतर बच्चों के हर साल कीड़ों की वजह से दांत भरवाने पड़ते हैं।
यदि स्वयं सुचारु रूप से देखभाल की जाए, तो दांतों और मसूड़ों की समस्या कम होगी।
Cavities (गड्ढे)
थूक या लार ऐसी चीज है, जो दांतों और मसूड़ों की रक्षक होती है। इससे न केवल भोजन के बचे हुए अंश साफ करने में मदद मिलती है, वरन् यह बैक्टीरिया के दुष्प्रभावों से भी
बचाती है गौरतलब के बैक्टीरिया से दांतों में गड्डे (कैविटीज) पड़ जाते हैं और मसूड़ों की बीमारी उत्पन्न होती है।
फ्लोराइड भी एक सक्षम प्राकृतिक रक्षक है । वैज्ञानिकों के अनुसार, जिन क्षेत्रों में जल में, फ्लोराइड की मात्रा पर्याप्त होती है, वहां ‘दंतक्षय’ कम पाया जाता है। दांतों में गड्डा (कैविटी ): दांतों में गड्ढे, ‘प्लाक’ (दांतों पर जमी मैल) के कारण उत्पन्न होते हैं।
प्लाक में स्थित बैक्टीरिया जब भोजन में शामिल चीनी और स्टार्च से मिलता है, तब एक एसिड बनता है, जिससे दांतों का इनेमल नष्ट होने लगता है और दांतों में छेद हो
जाता है। यदि इलाज समय पर न किया जाए, तो यह और गहरा होता चला जाता है तथा अन्ततः दांतों के मज्जे (पल्प) तक पहुंच जाता है, जिससे दांतों में दर्द उत्पन्न होता है एवं दांतों की मज्जा भी नष्ट हो जाती है।
दांतों के चिकित्सक दांतों की कैविटी को कुछ रसायनों द्वारा सिर्फ भर सकते हैं, किन्तु कुछ होमियोपैथिक दवाओं द्वारा कैविटी का बनना रोका जा सकता है।
पैरियो- डेंटल डिजीज- जिजिवाइटिस
मसूड़ों की बीमारी: दांतों के इर्द-गिर्द के तन्तुओं (मसूड़ों और हड्डी) की बीमारी को पैरियो- डेंटल डिजीज कहते हैं। यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है। इस बीमारी के प्रथम चरण को जिजिवाइटिस कहते हैं। इसमें पहले मसूड़े मुलायम पड़ जाते हैं, उनमें जलन होने लगती है और मुंह से खून आने लगता है। ऐसा ‘प्लाक’में मौजूद बैक्टीरिया के कारण होता है।
पैरियोडांटाइटिस
ये बैक्टीरिया धीरे-धीरे मसूड़े के अन्दर प्रवेश कर जाते हैं और तंतुओं को प्रभावित करने लगते हैं। यह इंफेक्शन धीरे- धीरे फैलता है और हड्डियों की जड़ तक पहंच जाता है। इससे दांत की जड़ें कमजोर हो जाती हैं और दांत हिलने लगते हैं। इस एडवांस स्टेज को ‘ पैरियोडांटाइटिस’ कहते हैं। यदि इसका
इलाज नहीं हुआ, तो दांत टूट जाते हैं। बच्चों एवं युवकों में भी यह बीमारी हो सकती है।