विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किसने की
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किसने किया था
Viविजयनगर साम्राज्य की स्थापना मुहम्मद बिन-तुगलक के शासन काल में हुई थी। इस साम्राज्य की स्थापना संगम के पाँच पुत्रों में से दो हरिहर तथा बुक्का ने सन 1336 ई० में की थी। इन्होंने कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के मध्य एक नये साम्रज्य की स्थापना की। वे प्रारंभ में होयसल राजा बीर बल्लाल तृतीय के यहाँ नौकर थे।

एक सिद्धान्त के अनुसार वैष्णव संत विद्यारण्य के प्रसाद से विजयनगर की स्थापना हुई। विजयनगर साम्राज्य में चार राजवंशों ने शासन किया- संगम वंश, सालुव वंश, तुलुव वंश तथा अरविडु वंश।
अब्दुल रज्जाक ने लिखा है कि विजयनगर दुनिया के सबसे भव्य शहरों में से एक लगा, जो उसने देखा या सुना था।
विजयनगर साम्राज्य की उत्पत्ति के बारे में इतिहासकारों में विवाद है। कुछ तेलुगू आन्ध्र अथवा काकतीय उत्पत्ति मानते हैं। कुछ कर्नाटा (कर्नाटक) या होयसाला से उत्पत्ति मानते हैं।
विजयनगर में शासन करने वाले प्रथम वंश संगम वंश था।
संगम वंश के शासकों में हरिहर, बुक्का, हरिहर द्वितीय, देवराय द्वितीय, मल्लिकार्जुन तथा विरुपाक्ष उल्लेखनीय थे। इनलोगों ने 1336 ई० से 1485 ई० तक शासन किया।
हरिहर प्रथम (1336 ई. – 1354 ई.)
हरिहर प्रथम इस वंश का प्रथम राजा था। 1346 ई. में उन्होंने होयसल राज्य पर अधिकार किया। इन्हें दो समुन्द्रों के अधिपति भी कहा जाता हैं। 1347 ई. में कादम्ब राज्य के कुछ भागों को जीता गया। उसने मैसूर के होयसल राजा को पराजित किया था। कुमार कम्पन के नेतृत्व में एक सेना मदुरा भेजा जिसका वर्णन कम्पन की पत्नी गंगादेवी ने ‘मदुरा विजयम’ में किया है। मोरक्को कें प्रिसिद्व यात्री इब्नबतूता ने इसी समय विजयनगर की यात्रा की थी। इब्नबतूता ने अरबी भाषा मे अपनी यात्रा वृतांत लिखी थी जिसे ‘ रेहला ‘ कहा जाता हैं।
बुक्का प्रथम ( 1354 ई. – 1377 ई.)
1354 ई. मे हरिहर के बाद उसका भाई बुक्का प्रथम राजा बना। उसने बहमनी के सुल्तान मुहम्मद शाह प्रथम के साथ युद्ध किया। उसके साम्राज्य में दक्षिण भारत, रामेश्वरम,तमिल व चेर प्रदेश आ गये थे।
हरिहर द्वितीय (1377 ई.- 1404 ई.)
बुक्का की मृत्यु के बाद 1377 ई० में हरिहर द्वितीय उसका उत्तराधिकारी बना। उसने बहमनी के सुल्तान मुजाहिद साह के आक्रमण को असफल किया। सन 1398 ई० में हरिहर द्वितीय व बुक्का द्वितीय ने कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के मध्य स्थित रायचुर दोआब पर अपना अधिकार करने के लिए बहमनी राज्य पर आक्रमण कर दिया। किन्तु फिरोज शाह ने उन्हें परास्त कर दिया। उसने मंसूर, चिगलपुर, त्रिचनापल्ली तथा कांजीवरम पर भी अधिकार कर लिया। अगस्त, 1406 ई० में हरिहर द्वितीय की मृत्यु हो गयी।
विरुपाक्ष प्रथम (1404 ई.)
हरिहर द्वितीय का पुत्र विरुपाक्ष गद्दी ओर बैठा था। इसका शासनकाल बहुत ही अल्पकालीन था।
बुक्का द्वितीय (1404 ई.- 1406 ई.)
पूर्व राजा बुक्का प्रथम का पोत्र था। इसका शासन काल दो वर्षों तक ही रहा था।
देवराय प्रथम (1406 ई.-1422 ई.)
हरिहर द्वितीय के बाद उसका पुत्र देवराय प्रथम संगम वंश का वास्तविक राजा बना। सिंहासन पर आसीन होने के पश्चात् बहमनी सुल्तानों से उसका युद्ध हुआ। जिसमें उसकी हार हुई तथा बारिपुर का किला छोड़ना पड़ा। फ़िरोजशाह बहमनी से अपनी पुत्री का विवाह किया था। दहेज़ के रूप में बाँकापुर का क्षेत्र उपहार में दिया था। सन 1410 ई० में उसने तुंगभद्रा पर एक बाँध बनवाया। तेलुगु का प्रसिद्ध विद्वान श्रीनाथ, जिसने हरविलासम नामक काव्य की रचना की, देवराय प्रथम का दरबारी था। प्रिसिद्व इटली यात्री निकोली कोंटी देवराय प्रथम के शासन काल में भारत आया था।
देवराय द्वितीय ( 1422 ई.- 1446 ई.)
देवराय प्रथम के बाद उसका पुत्र रामचन्द्र सिंहासन ओर बैठा उसके बाद उसका भाई वीरविजय शासक बना। वीरविजय का शासनकाल भी कम था। इसके बाद वीरविजय का पुत्र देवराय द्वितीय विजयनगर का शासक बना। यह 1422 ई. से 1446 ई. तक लगभग 24 वर्षो तक शासन किया। इसे ईमादी देवराय कहा जाता है।यह संगम वंश का महान शासक थे। इसके शासनकाल में तेलुगू कवि श्रीनाथ दरबारी कवि थे। श्रीनाथ ने ‘हरविलासम‘ नामक काव्य की रचना की। यह अपने साम्राज्य का विस्तार उत्तरी और पुर्वी दिशा में कृष्णा नदी तक विस्तार किया था। इसने तुर्की धनुर्धर को अपनी सेना में शामिल किया था। इसने उड़ीसा और आंध्रप्रदेश के गजपति शासक को पराजित किया था। इसने मुसलमान को सेना में भर्ती करने की प्रथा शुरू की।

ईरान का राजदूत अब्दुर्रज्जाक देवराय द्वितीय के शासनकाल में विजयनगर आया था। एक शिलालेख में देवराय द्वितीय को ग़ज़बेटर (हाथियों की शिकारी) की उपाधि दी गई है। देवराय द्वितीय ने महान संस्कृत ग्रंथ ‘महानाटक सुधानिधि’ एवं ब्रह्मसूत्र-टीका पर एक भाष्य लिखा था। इसने केरल और उड़ीसा के राज्यो पर अधिकार किया। उसने श्रीलंका पर भी आक्रमण कर उसे जीता।
विजयराज द्वितीय (1446 ई.- 1447 ई.)
इनका शासनकाल भी कुछ माह तक ही था। यह एक अयोग्य शासक था। इसके राज्य में अराजकता का माहौल उत्पन्न हो गई थी। इनके समय ही उड़ीसा के शासक पुरुषोत्तम गजपति दक्षिण में तिरुवन्न्मलय तक बढ़ आया था।
मल्लिकार्जुन (1446 ई.- 1465 ई.)
यह देवराय द्वितीय का पुत्र है। इन्हें प्रौढ़ देवराय भी कहा जाता हैं। यह अपने शासन को संभालने में असमर्थ रहा था।इसके शासनकाल में कोडबिन्दु और उदयगिरि के किले इनके अधिकार से मुक्त हो गए थे। उड़ीसा के गजपति शासकों द्वारा भी ये पराजित हुए थे। चंद्रगिरि के शासक नरसिंह सालुव ने इनका सिंहासन इनसे छीन लिया था। चीनी यात्री महुआंन 1431 ई. में इनके साम्रज्य में आया था।
विरुपाक्ष द्वितीय (1465 ई.-1485 ई.)
ये संभवत संगम वंश जे अंतिम शासक थे। इनके समय गोआ, कोकण, उत्तरी कर्नाटक इनके राज्य से अलग हो गया था। साम्राज्य में सभी तरफ अराजकता का माहौल पैदा हो गया था। पुर्तगाली यात्री नूनीज़ के मुताबिक राज्य में डर और भय की स्तिथि हो गई थी। इन परिस्थितियों का लाभ उठाकर सालुव वंश का सेनापति ने संगम वंश के राज्यसिंहासन पर कब्ज़ा करके सालुव वंश के राजा सालुव नरसिंह को गद्दी ओर बैठाया।