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यूनान का इतिहास

July 22, 2020 by nextgyan

 

 

 

 

यूनान एक प्रायदीप है जिसके तीनो तरफ समुद्र हैं। कोरिंथ की खाड़ी यूनान को दो भागों में बांटती है। । खाड़ियों और समुद्र के कारण इस देश का किनारा बहुत की कटा- छटां हुआ है। यहाँ पर बहुत से उत्कृष्ठ श्रेणी के बंदरगाह है। यूनान का आंतरिक भाग पहाड़ो के कारण कई भागों में बंटा हुआ है। प्राकृतिक दृष्टिकोण से यूनान को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। 1. उत्तरी भाग 2. मध्य भाग 3.दक्षिणी भाग

दक्षिणी भाग को पेलोपोनेसस कहते है। पुरतात्विदो के अनुसार एजियन समुंद के तट के चारों तरफ अति प्राचीन सभ्यता-संस्कृति के ध्वंसाशेष दबे हुए है। इनका केंद्र क्रीट था। इसका पुरातन इतिहास प्राराम्भिक मिनियन के नाम से विख्यात है।
◆ मिनियन युग
यह द्वीप प्रस्तर युग की पार कर चुका था। कांस्य -निर्माण अपने शैशव काल मे था। मृत्पात्र (मिट्टी के बर्तन) कुम्हार के चाक के बिना ही निर्मित होता था। 2300 ई. पू. के मध्य मिनियन युग शुरू हुआ था। अगले 1000 वर्षो तक शांति व्यवस्था कायम रही थी। क्योंकि उस वक्त दो शक्तिशाली राजघरानों के केंद्र नोसस और फेस्टोस थे। इसलिए उस वक्त व्यापार,कला और संस्कृति आदि की बहुत विकास हुआ। हिसाब किताब रखने के लिए मिट्टी के टिकिये का व्यवहार किया जाता था। कुम्हार के चाक का आविष्कार हो चुका था। अनेक रंगों के मिट्टी के बर्तन बनने लगे थे। नोसस में राजप्रासाद की मजबूती देखते ही बनती थी। लगभग 1600 ई. पू. नोसस में एक उथल-पुथल हुआ संभवत भूकंप आया था या गृहयुद्ध छिड़ गया था। राजप्रासाद धराशायी हो गया।
◆◆ मिनोअन युग
मध्य युग के बाद मिनोअन युग आया था। धराशायी राजप्रासाद के बदले एक बहुत सुंदर राजप्रासाद का निर्माण किया गया। इसमे बहुत अच्छी कलात्मक चित्रकारी की गई थी। चित्रकारी में वृषभ-द्वंद का दृश्य देखते ही बनती थी। नोसस राजप्रासाद में बेढंग रंगशाला प्राप्त हुआ है। संभवत इसी रंगशाला में वृषभ-द्वंद के मनोरंजन के लिए लोग एकत्रित हुए करते थे। यूनानी लेलेज़( Leleges) और पेलिस्ज़- यन( pelesgians) आदि मिश्रित जातियों के थे। क्रीट की सभ्यता-संस्कृति के सम्पर्क में आने के कारण उनका विकास हुआ था।
लगभग 1400 ई. पू. में क्रीट की सत्ता का पतन हो गया था।
एशिया माइनर के दक्षिण में जो पुरातत्वीय उत्खनन हुए है उसमें एक कबीले का पता लगता है जिसे एचियन के नाम से पुकारा जाता था। यूनानी प्रायद्वीप थेसाली में एचियन कबीले लोगों का निवास था। एचियनों ने क्रीट पर अधिकार करके मिसु पर भी आक्रमण कर दिया था। एचियन के राजकुमारों के नाम क्रमशः अट्रेस और अगामेनन थे जो युद्ध प्रिय थे। होमर के महाकाव्य “ओडेसी” से भी यह पता चलता है कि राजकुमार अगामेनन ने ट्राय राज्य पर आक्रमण किया था। इसे ही ट्रोजन का युद्ध कहाँ जाता है।
एचियन कबीले के बाद यूनान देश मे डोरियाइयों (Dorians) का आगमन हुआ। इन्होंने ट्रिने और मेसिना(Mycena) नगर पर आक्रमण कर विजय प्राप्त कर लिया। इस काल मे यूनानियों का सभ्यता-संस्कृति का पतन होने लगा। यूनानी बर्बर जातियों के सम्पर्क में आकर उनकी तरह ही बर्बर सभ्यता-संस्कृति में डूबते चले गए। डोरियाइयों के आने के बाद यूनानियों के वीरगाथा काल का समापन हो गया।
प्राचीन यूनानी लेलेज़( Leleges) और पेलिस्ज़यन( pelesgians) आदि मिश्रित जातियों के थे।
डोरियाई आक्रमण के साथ ही यूनानी सभ्यता-संस्कृति की दीप-शिखा बूझ गयी। यूनान के इतिहास में यह युग अंधकार युग कहाँ जाता हैं। यह स्तिथि यूनान में लगभग दो शताब्दियों तक बनी रही।

◆ डोरियाई का यूनान में आगमन
(डोरियाई संभवतः मकदूनिया (Macodonia) के थे । एड्रियाटिक तट से एपिरस (Epirus) अथवा इलेरिया (Illyria) प्रदेश से डोरियाई दक्षिण की ओर एक संपन्न प्रदेश की खोज में निकल पड़े। कुछ थेसाली की ओर चले गए और कुछ बोशियन (Bocoian).प्रायद्वीप की ओर चले गए। वहाँ वे आदिवासियों के साथ घुल-मिल गए। बाद में यूनान के विभिन्न राज्यों – पेलोपोनेश, मेसिना, मेगारा, कोरिथ, लेसेडेमोन आदि में बस गए।
डोरियाई जातियों का यह प्रवास क्रमिक था। एशिया के दक्षिणी।भाग में डोरियाई वस्ती कायम हो गई। अन्य प्रायद्वीपीय प्रदेशों के आदिवासी डोरियाई आक्रमणकारियों के शिकार बनने की अपेक्षा उनकी छत्रछाया में रहने लगे। 1050 ई० पू० तक डोरियाई विजय अपनी चरमसीमा पर पहुँच चुकी थी। तटीय प्रदेशों में डोरियाई बस्तियाँ कायम होती गईं।
इधर-उधर भटकने की अपेक्षा एक जगह बसने की प्रक्रिया शुरू हो गई। इसे उपनिवेशीकरण (colonization) कहते हैं।

डोरियाई उपनिवेशीकरण के उद्देश्य अर्द्ध-आर्थिक और अर्द्ध सामाजिक थे। यूनान की भूमि सीमित थी अतः बढ़ती हुई आबादी के लिए भोजन की समस्या उत्पन्न होने लगी।
लिडिया (Lydia) के शक्तिशाली राज्य के कारण तटीय भाग में बसने वाले यूनानी एसिया माइनर की ओर बढ़ नहीं सकते थे। अतः एजियन (Aegcan) सागर के दोनों ओर बढ़ने के सिवा और कोई विकल्प नहीं था। पेट की भूख शान्त करने के लिए उपनिवेशीकरण अनिवार्य हो गया। किन्तु, इसके साथ एक सामाजिक कारण भी जुड़ा हुआ था। यूनानी समाज में पिता की संपत्ति पर सभी बच्चों का अधिकार होता था । अतः इस पर अधिकार करने के लिए उत्तराधिकार का युद्ध होता था । जो सबसे योग्य होता था वही संपत्ति का उत्तराधिकारी बन जाता था। अतः जो संपत्ति के अधिकार से वंचित हो जाते थे वे अपनी आजीविका की खोज में निकल पड़ते थे। वे दूसरे देश में जाकर वहाँ के लागों के साथ
आसानी से सामंजस्य स्थापित कर लेते थे। वे वहाँ के आदिवासियों के साथ रोटी-बेटी का संबध भी बना लेते थे। लेकिन , वे मूल नश्ल को अक्षुण्ण रखते थे।

प्रवासी यूनानियों के लिए एजियन खाड़ी एक उपयुक्त केन्द्र था । एथेंस के पड़ोसी मेगारा (Megara) ने 660 ई० पू० में बेजेंटियम को आजाद किया। काला सागर में मिलेशियन (Milesian) ने सिजीस (Cyzieus) और एबेडोस (Abydos) को बसाया। उत्तरी एजियन प्रवासी समूहों ने मेसेना (Messana), नेक्सोस (Naxos), कटाना (Catana) एवं अन्य उपनिवेशों को बसाया । कोरिय ने सेराकुज (Syracuse) उपनिवेश बसाया। उपनिवेशीकरण के फलस्वरूप व्यापार- व्यवसाय का विकास हुआ। राज्य का स्वरूप कुलीनतंत्र
(aristocracy) से धनिकतंत्र (plutocracy) हो गया।
कालान्तर में धनिकतंत्र ने निरंकुशतंत्र (tyranny) को जन्म दिया| एथेंस में कृषक-विद्रोह होते रहते थे । विद्रोहियों तथा असंतुष्ट लोगों का नेता सरकार पर अधिकार कर लेता था। यूनानी उसे ‘तुरेनो‘ (Turanno) कहते थे। किन्तु, शीघ्र ही यह नाम अपने
निरंकुशतापूर्ण कार्यों के लिए बदनाम हो गया। निरंकुश शासकों का दरबार काफी भड़कीला होता था, जिसे साधारण लोग देखकर दंग रह जाते थे। निरंकुश शासक मध्यवर्ग के लोगों को अपने पक्ष में मिलाए रखते थे। 7वीं सदी ई० पू० के यूनान में. विशेषकर आयोनिया
और मध्यवर्त्ती यूनानी राज्यों में इस तरह के अनेक निरंकुश शासक थे। अनेक निरंकुश शासक सार्वजनिक कार्यों में दिल खोलकर खर्च करते थे।
◆ सिसोन (Sicyon) के क्लेसथनिज (Cleisthenes) ने डेल्फी में अपोल्लो के मंदिर को खूंब सजाया । वह पिथयन (Pythian)
खेलकूदों का आयोजक भी था । इसी तरह एथेंस के पिसीसट्रेटस (Pisisuratus) ने अथेना के राष्ट्रीय पर्व को प्रोत्साहन दिया।
निरंकुश तंत्र अस्थायी साबित हुआ। जिस तरह राजविप्लव द्वारा ये निरंकुश शासक सत्ता में आते थे उसी तरह विप्लव द्वारा ही उनका अंत होता था । मध्यवर्ग शक्तिशाली होता गया। यह स्वतंत्रता के लिए लड़ने लगा। दलित कृषकों, दासों एवं शिल्पियों का सहयोग
उन्हें प्राप्त था । अतः निरंकुशतंत्र के बाद जनतंत्र (Democracy) का युग आया। यूनानी सभ्यता का काल ई० पू० 1000 से ई० सन् के आरम्भ तक माना जाता हैं। यह सभ्यता आर्यों द्वारा निर्मित थी। मध्य एसिया से निकलकर वे काला सागर होते हुए यूनान और उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में बस गये यूनान के एक नगर स्पार्य में डोरियन शाखा के तथा हूसरे नगरे एवेस में आयोनियन शाखा के आर्य बस गए। स्पार्टा और एथस की सभ्यता दो भागों में बाँटी जा सकती है- नगर राज्य काल (1000 से 340 ई० पू० )
और साम्राज्यकाल ( 30 से 150 ई० पू० ) ।
◆ नगर राज्य (1000-340 ई० पू०) : प्रारंभ में यूनान में नगर राज्य थे। इनमें एथेस, स्पार्य, जोलेम्पिया आदि प्रमुख थे । इन नगर राज्यों के अलग-अलग राजा थे उन्हें शासन कार्य में परामर्श देने के लिए एक परामर्शदात्री समिति थी । एक आम सभा थी जिसमें आम यूनानियों का प्रतिनिधित्व होता था ये दोनों राजा की निरंकुशता पर नियंत्रण रखते थे। नगरनिवासी अपने नगर की गौरववृतद्धि और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए तत्पर रहते थे ४वीं शताब्दी तक इन नगर राज्यों में राजतंत्र का स्थान कुलीनतंत्र ने लिया । लेकिन कुलीनतंत्र आधिक दिनों तक नहीं चल सका और निरंकुश शासकों का युग आरंभ हुआ। निरंकुशतंत्र के बाद प्रजातंत्र कायम हुआ।
◆ स्पार्टा : 825 ई० पू० में लाइकरगस (L.ycurgus ) ने स्पार्टा का संविधान तैयार किया। इसके अनुसार वहाँ एक साथ दो राजा होने लगे दोनों के पद, वंश एवं अधिकार बराबर थे वे सर्वोच्च शासक के अतिरिक्त पुरोहित, न्यायाधीश एवं सेनापति भी थे। दोनों
ही सीनेट के नियंत्रण में थे सीनेट जिरुशिया कहलाती थी इसमें 28 सदस्य थे जो कुलीन-वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे। उनकी उम्र साठ वर्ष की होती थी और वे जीवन-पर्यंत अपने पद पर बने रहते थे इसमें दोनों राजा भी बैठते थे सीनेट सर्वोच्च न्यायालय भी था ।
नियम बनाना और न्याय करना इसके दो प्रमुख कार्य थे लोकसभा अपोला कहलाती थी। इसमें तीस वर्ष तक की उम्र का कोई भी नागरिक बैठ सकता था इसके सदस्यों की संख्या आठ-नौ हजार तक हो जाती थी सीनेट विधेयक की रूपरेखा निश्चित करके वहाँ भेजती थी। यहाँ विधेयक पर बाद-विवाद होता था और इसकी स्वीकृति से विधेयक कानून वन जाता था अपोला सीनेट के सदस्यों तथा आयुक्तों को भी चुनती थी ।
राज्य में पांच आयुक्तों की एक समिति भी होती थी। वे एफर कहलाते थे उनका चुनाव अपोला में होता था उनका कार्यकाल एक वर्ष का था। समिति विभिन्न कार्याँ की देख-भाल करती थी यह राजाओं पर भी निगरानी रखती थी थीरे-धीरे एफरों के अधिकारों में वृद्धि होती गई और उनका बोल-बाला कायम हो गया।

देश की सुरक्षा के दृष्टिकोण से स्पार्टा के निवासियों के शारीरिक विकास पर विशेष ध्यान दिया गया । उनके बौद्धिक विकास की सर्वथा उपेक्षा की गई। व्यायामशाला और खेलकूद के मैदान का महत्त्व बढ़ गया। बालचर, कवायद एवं आखेट पर बल दिया गया।
सारा नगर एक सैनिक शिविर में बदल गया था । सभी स्पार्टावासी सैनिक थे। सफल और महान् सैनिक बनना ही उनके जीवन का परम लक्ष्य था । अतः बच्चों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाता था। कमजोर बच्चों को मैदान या पर्वतों पर काल के गले लग जाने के लिए छोड़ दिया जाता था। बच्चों के पालन-पोषण के लिए सरकार की ओर से व्यवस्था की गई थी। भोजनालय और शयनागार राज्य बनाता था । 7 वर्षों के बाद बच्चों को सरकार के संरक्षण में रहना पड़ता था उनके शरीर को ड्स्पात की भाँति बनाने का प्रयत्न किया जाता था। वे सामूहिक जीवन व्यकतीत करते थे, पारिवारिक जीवन नहीं। 60 वर्ष के बाद ही वे पारिवारिक जीवन व्यतीत कर सकते थे। सात वर्ष से साठ वर्ष तक स्पार्टावासियोो का जीवन अनुशासित एवं नियंत्रित था। स्पार्टवासी वाणिज्य-व्यापार भी नहीं कर सकते थे । वाणिज्य व्यापार से धन-दौलत की वृद्धि होती है और धन-दौलत से भोग -विलास को प्रोत्साहन मिलता है। अतः वाणिज्य व्यापार पर प्रतिबंध था। सोने-चाँदी के सिक्के भी वर्जित थे। लोहे के कुछ सिक्के चलाए जाते थे। कोई नागरिक अपना राज्य छोड़कर बाहर नहीं जा सकता था और न कोई बाहरी व्यक्ति ही स्पार्टा मे प्रवेश कर सकता था । नश्ल और रक्त की शुद्धता अक्षुण्ण रखने के लिए अंतर्जातीय विवाह भी वर्जित था । विवाह आवश्यक था। विवाह के लिए पुरुष की उम्र 30 और नारी की उम्र 20 निश्चित थी । जनसंख्या की वृद्धि पर कोई प्रतिबंध नही था। पुरुषों के समान स्त्रियों को अधिकार प्राप्त थे। उन्हें भी कठोर परिश्रम करना पड़ता था। यदि किसी स्त्री का पुत्र युद्ध में बीर गति को प्राप्त होता तो वह स्त्री गौरवान्वित होती थी।
*১৯২ जो युद्ध से मुँह मोड़ लेता या पराजित होता उसकी माँ लज्जित एवं दुखित होती थी। ।

(एथेंस : डोरियाई स्पार्टा से आयोनियाई एथेंस विल्कुल भिन्न था। यदि स्पार्टा एक विस्तृत सैनिक शिविर था तो एथेस मनीषियों और विचारकों का महानू शिक्षालय था। स्पार्टी की शक्ति जमीन पर सीमित थी तो एथेस की शक्ति समुद्र पर । स्पार्टा यथास्थिति का समर्थक तो पशें परगातिशील। दोनों राज्यों की विभिन्नताएँ बढ़ती गईं और अंत में दोनों में संघर्ष शुरू हो गया।

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