मगध साम्राज्य के हर्यक वंश
http://मगध साम्राज्य के हर्यक वंश
मगध साम्राज्य में बृहद्रथ वंश के अंतिम शासक निपुंजय था जिसकी जिसकी हत्या उसके मन्त्री पुलिक ने कर दी तथा अपने पुत्र ‘बालक’को मगध का शासक नियुक्त किया। इस प्रकार बृहद्रथवंश का पतन हो गया। कुछ समय पश्चात् भट्टिय नामक एक सामन्त ने ‘बालक’ की हत्या करके अपने पुत्र विम्बिसार को पंद्रह वर्ष की आयु में (544 ईसा पूर्व) मगध का नरेश बनाया।
◆ बिम्बिसार (544 ई.पू से 492 ई.पू)
बिम्बिसार 15 वर्ष की आयु में मगध की गद्दी पर बैठा। उसने गिरिब्रज (आधुनिक राजगीर या राजगृह) को अपनी राजधानी बनाकर हर्यक वंश की नींव रखी। बिम्बिसार एक कुशल राजनीतिज्ञ था। अपने कूटनीतिज्ञ और क्षमता के बल पर उसने मगध साम्राज्य का विस्तार किया। अपनी शक्ति को सुदृढ़ करने के लिए बिम्बिसार ने पडोसी राज्यों के साथ वैवाहिक संबंध भी स्थापित किये।
◆ बिम्बिसार के वैवाहिक संबंध
उसने कौशल की राजकुमारी कौशलदेवी (महाकोशल की पुत्री और पसनेदी कि बहन) से विवाह किया। इसके कारण उसे दहेज़ में काशी मिल गई। उसने मद्रकुल के प्रधान की राजकुमारी क्षेमा के साथ विवाह करके अपने साम्राज्य का विस्तार किया
◆ बिम्बिसार की युद्ध-नीति
बिम्बिसार ने सर्वप्रथम अंग के राजा ब्रह्मदत्त को परास्त करके अंग राज्य को मगध में मिला लिया। अंग राज्य के चंपा बंदरगाह को अपने अधीन कर लिया जिसके कारण मगध के व्यापार और वाणिज्य में भारी वृद्धि होने लगी। मगध साम्राज्य की प्रतिष्ठा काफी बढ़ गयी। मगध साम्राज्य सीमा पूर्व में अंग और पश्चिम में काशी तक फैल गयी। अंग के अतिरिक्त कुछ और प्रदेशों को जीतकर उसने मगध साम्राज्य में मिला लिया। बिम्बिसार का प्रभाव इतना बढ़ गया था कि उसके दरबार मे गान्धार के राजा पुक्कुसाती ने अपना राजदूत भेजा था।
◆ बिम्बिसार की शासन व्यवस्था◆

व्यवहारिक महामात्र :– उस समय न्यायाधीश को व्यवहारिक महामात्र कहा जाता था। मगध का शासन-प्रबंध महमात्रों के पास था, शासन के ऊपर उनकी गहरी दृष्टि रहती थी। उस वक्त राजा की दण्ड नीति बहुत ही कठोर थी। कारावास के अलावा मृत्युदंड देने भी व्यवस्था थी। अनुचित और गलत सलाह देने पर बड़े से बड़े अधिकारी को पदच्युत कर दिया जाता था। राज्य की तरफ से अच्छे कार्य करने पर उचित पुरस्कार से सम्मानित किया जाता था।
◆ बिम्बिसार का अंत
बिम्बिसार के समय ही ‘जीवक’ नामक प्रिसिद्ध वैध और राजगृह के निर्माणकर्ता ‘महागोविंद’ हुए थे।
कुशल नेतृत्व और प्रशासन की आवश्यकता पर सवर्प्रथम बिम्बिसार ने ही ज़ोर दिया। अंतिम समय में अजातशत्रु ने अपने पिता की हत्या करके मगध साम्राज्य पर अधिकार कर लिया।
◆ अजातशत्रु :- 492 ई. पूर्व से 460 ई. पूर्व ◆
अजातशत्रु मगध साम्राज्य का प्रतापी राजा था। इसके बचपन का नाम “कुणिक” था। इसने अपने पिता की हत्या कर बलपूर्वक मगध साम्राज्य के सिंहासन पर अधिकार कर लिया। अजातशत्रु मगध साम्राज्य के गद्दी पर बैठने से पूर्व अंग की राजधानी ‘ चम्पा में शासक नियुक्त था और चम्पा में ही उसने शासन -व्यवस्था की कुशलता प्राप्त की थी। एक अनुश्रुति के मुताबिक महात्मा बुद्ध के चचेरे भाई “देवदत्त” के उकसाने पर ही अजातशत्रु ने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह किया था। “बौद्ध साहित्य” में अजातशत्रु को कोशलदेवी का पुत्र और ज़ैन-साहित्य में लिच्छवी राजकुमारी ‘चेलना” का पुत्र कहा गया है। ” दर्शक ” के अतिरिक्त अजातशत्रु के और भी कई भाई थे- जिनके नाम ‘शीलवन्त” और “विमल कोन्डज़्ज़” थे। अजातशत्रु के द्वारा “बिम्बिसार” की हत्या कर देने से कोशलदेवी को बड़ा धक्का लगा और बाद उसका भी देहान्त हो गया। उस समय यह देखकर कौशल नरेश “पसनेदी” ने काशी की वार्षिक आय रोक दिया, इस कारण मगध और कौशल में पुनः संघर्ष शुरू हो गया। काशी को लेकर जो संघर्ष मगध और कौशल राज्य के मध्य हो रही थी उसमें कभी मगध जीतता तो कभी कोशल। अंत मे पसनेदी यानी प्रसेनजित ने संधि करना उचित समझा और अपनी कन्या “वज़िरा” का विवाह अजातशत्रु के साथ कर दिया। इससे अजातशत्रु की प्रतिष्ठा पुनः बहुत बढ़ गयी और मगध राज्य की शक्ति पराकाष्ठा पर पहुँच गयी।
अजातशत्रु जनता था कि जब तक वज़्ज़िसंघ नेस्तनाबूद नही होगा तब तक उसकी प्रतिष्ठा उत्तर-बिहार में कायम नही हो सकती है। कौशल राजा प्रसेनजित ने एक बार वज़्ज़िसंघ पर आक्रमण किया था। इसी तथ्यों को ध्यान में रखकर अजातशत्रु कहता था कि वृजज़ीसंघ चाहे कितने भी समृद्ध हो में इन्हें उखाड़ फेंकूँगा, और नष्ट कर दूँगा। इसी बात को ध्यान रखकर उसने अपनी राजधानी ‘राजगृह’ की किलाबंदी करवा दी। अजातशत्रु के दो मंत्री थे– सुनिद्द ,वर्षकार और प्रचंड। वर्षकार कूटनीति में कौटिल्य से भी तेज था। अजातशत्रु ने वर्षकार को महात्मा बुद्ध के पास उनके विचार लेने के लिए भेजा। बुद्ध उस समय गुद्कूट में ठहरे हुए थे।
◆ वर्षकार के द्वारा बज़्ज़िसंघ में फूट डालना
वर्षकार के द्वारा अजातशत्रु के मंतव्य की चर्चा करने पर बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनन्द से पूछा,” क्यों आनन्द , तुमने क्या सुना है कि वज़्ज़ियो के सन्निपात बार बार और भरपूर होते है।?” बुद्ध ने कहा कि “जब तक वज़्ज़ियों के जुटाव बार बार और ज्यादा होते है, तब तक उनकी बढ़ती की ही आशा करनी चाहिए, न् की परिहाणी की।
बुद्ध के इस प्रवचन से वर्षकार को वज़्ज़ियों की शक्ति का पता लग गया, इसलिए उसने आने गुप्तचरों के द्वारा वज़्ज़िसंघ में फूट डालने का निर्णय किया।
◆ अजातशत्रु के द्वारा वज़्ज़िसंघ पर आक्रमण
वज़्ज़िसंघ एक शक्तिशाली गणराज्य था। इससे मगध साम्राज्य भी डरता था। बिम्बिसार ने सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही इस संघ के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किया था।जैन-साहित्य के अनुसार लिच्छवी -राजकुमारी चेलना से बिम्बिसार को दो पुत्र हुए थे 1. हल्ल और दूसरा बेहल्ल बिम्बिसार ने अपने इन पुत्र को अपना प्रिसिद्ध हाथी और एक बहुमूल्य माला उपहार में दी थी। अजातशत्रु के राजा बनने पर अजातशत्रु ने इन उपहारों को वापस माँगा, लेकिन बिम्बिसार के दोनों पुत्रों ने इनकार कर दिया। और अपनी रक्षा के लिए वे दोनों अपने नाना के यहाँ वृजज़ी संघ चले गए।
◆ अजातशत्रु के द्वारा महाशिलाकण्टक और रथमुशलो का प्रयोग
इस कारण क्रुद्ध होकर अजातशत्रु ने वज़्ज़ि पर आक्रमण कर दिया , मगध और वज़्ज़ि संघ के मध्य गंगा नदी पर एक बंदरगाह था,उसके समीप ही एक खान थी इन दोनों पर मगध और वज़्ज़िसंघ का आधा आधा अधिकार था। लेकिन वज़्ज़िसंघ मगध को इसका उपयोग नही करने देते थे। अजातशत्रु और उसके मंत्री ने कूटनीतिक पूर्वक गुप्तचर भेजकर वज़्ज़िसंघ की एकता को भंग करवा दिया।वज़्ज़ियों में फूट डालने के बाद अजातशत्रु ने बड़ी सतकर्ता से अपनी सेना तैयार की। इस युद्ध मे अजातशत्रु ने महाशिलाकण्टक और रथमुशलों नाम के हथियारों का प्रयोग किया था।
◆ राजगृह में मजबूत दुर्ग का निर्माण
काशी, कौशल और वैशाली के अतिरिक्त अजातशत्रु के खिलाफ उसके अन्य शत्रुओं ने मिलकर एक अलग मोर्चा बनाया। मगध साम्राज्य और वज़्ज़िसंघ के इस युद्ध मे आजीवकसम्प्रदाय के प्रधान ‘मंखालिगोत्साल’ भी मारे गये। कहा जाता है कि मगध साम्राज्य और गणतंत्रों के मध्य 16 वर्षो तक युद्ध चला। अंत मे अजातशत्रु ने विजय पाई।
अजातशत्रु ने अवन्ती के शासक प्रधौत के आक्रमण के भय से अपनी राजधानी राजगृह की की सुरक्षा के लिए एक मजबूत दुर्ग बनवायी।
◆ प्रथमः बौद्ध संगीति का आयोजन
आरंभ में अजातशत्रु जैनी था, लेकिन बाद में वह बौद्ध धर्म का आदर करने लगा था। इसी के शासन काल मे भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ था। महापरिनिर्वाण सूत्र के अनुसार अजातशत्रु को महात्मा बुद्ध के भस्म का एक भाग मिला था , बुद्ध के इन अवशेषों को लेकर राजगृह में एक स्तूप का निर्माण करवाया। अपने शासनकाल ने अजातशत्रु ने बुद्ध के वचनों का संग्रह करने के लिए बौद्धधर्म की प्रथमः संगीति का आयोजन 483 ई. पू. में राजगृह के सप्तपर्णी गुफा में किया था।
अजातशत्रु का अंत
पुराणों के अनुसार अजातशत्रु ने 28 वर्ष और बौद्ध साहित्य के अनुसार 30 वर्षों तक शासन किया था। अंतिम समय मे उसकी हत्या उसके पुत्र उदयिन के द्वारा कर दी गयी।
◆ उदयन (460 ई.पू -440 ई.पू)
उदयिन (460-444 ई०पू०) ने आधुनिक पटना में गंगा और सोन के संगम पर एक किला बनवाकर पाटलिपुत्र नगर की आधार शिला रखी। एकच्छत राजा की उपाधि के लिए मगध और अवत्ती में ।निर्णायिक पुद्ध अजातशत्रु के समय, नहीं हो सका। उसके मरने के शीघ्र बाद ही मगध और अवन्ती की पुरानी कशमकश फिर से ताजा हो उठी। यह भी विस्तारवादी नीति का समर्थक था। अपने राज्यकाल के दूसरे वर्ष ही उसने अवन्ती राज्य को जीतकर राजा विशाखयूप को अपने अधीन कर लिया था।
उदयिन का अंत
वर्ष बाद जब विशाखयूप की मृत्यु हुई, तब उदायी अवन्ती का प्रत्यक्ष राजा हो गया।
‘कथासरित्सागर‘ और अन्य साधनों से ज्ञात होता है कि इस समय तक अवन्ती ने वत्सराज को अपने अधीन कर लिया था । उदायी ने एक पड़ोसी राज्य पर आक्रमण किया और उसके राजा को मार डाला । उस राजा के पुत्र ने अवन्ती की राजधानी उज्जयिनी में शरण ली और बाद में जैन-साधु का वेष धारण कर वह पाटलिपुत्र आया। वहाँ उसने सोये हुए उदायीन् की धोखे से हत्या की |