Skip to content

Make green our planet

  • Home
  • About us
  • All posts
    • नदियाँ
    • क्म्पयुटर
    • इतिहास
  • contact us
  • All posts
  • contact us
  • About us
  • Home

Make green our planet

बद्लो सोच बद्लो दुनिया

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष

May 3, 2020 by nextgyan

 

 

 

पूर्व- वैदिक काल मे राजनीतिक और सामाजिक संगठन की रूपरेखा में आर्यो की सभ्यता ग्राम्य सभ्यता थी। ग्राम ही आर्थिक संगठन का आधार था। ग्राम के चारों ओर चारागाह होते थे। चारागाह के चारों ओर अरण्य (जंगल) थे। ऋग्वेद में यव और धान का उल्लेख मिलता है। कृषि की प्रधानता थी। कृषक वर्षा पर आधारित थे। कृषि ही मनुष्य के समृद्धि का आधार था। कुँए के जल से भी भूमि की सिंचाई की जाती थी।
विदेशों से व्यापारिक संबध रहे थे। व्यपारियों को “पाणि”कहा जाता था। आर्यो की संपत्ति भूमि और पशु थे। जंगल को साफ करके खेती की ज़मीन निर्मित किया जाता था। मुद्रा का प्रचलन था या नही इसके विषय मे संदेह था किंतु प्रमुखतः वस्तुओं के आदान प्रदान करके की व्यापार किया जाता था। ऋण लेन देन की प्रथा थी। ऋण न चुकाने पर ऋणी को दास बना दिया जाता था।
उत्तरवैदिक काल मे आर्थिक क्षेत्र में बहुत उन्नति हुई। गोबर का खाद के रूप में खेती में उपयोग किया जाने लगा। यव, धान, गेंहू, तिल इत्यादि की खेती की जाने लगी थी। उत्तर-वैदिक काल मे सोना, तांबा, पीतल, चांदी,लोहा और सीसे का उल्लेख सत्पथ ब्राह्मण में मिला है। सीसे का प्रयोग तौलने के लिए बँटखरे के रूप किया जाता था। अभी तक इस काल के निवासी ग्राम में ही रहते थे। धनीमनी व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही थी। संभवत बड़े नागरिक यानी नागरीय जीवन की शुरुआत की नींव यही धनीमनी व्यक्तियों के द्वारा किये जाने लगे थे। बड़े बड़े और धनाढ्य लोग छोटे छोटे और कमज़ोर तबके के लोगों को हटाकर गाँवों पर अपना अपना अधिकार कायम करने लगे।
तपस्वी और बृह्मचारी चर्म और त्वचा का वस्त्र धारण करते थे। चरखों-करघों कस प्रयोग उत्तर वैदिक काल मे आरम्भ हो गई थी। विनिमय और वास्तुओं के आदान प्रदान के साथ साथ सिक्के के रूप में निष्क, कृष्णल, शतमान और पाद का प्रचलन शुरू हो गया था। इस प्रकार प्राचीनकाल के क्रय विक्रय के मानदंड “गौ” का स्थान सिक्के शतमान लेने लगे थे।
उत्तरवैदिक काल मे शिक्षक और शिष्य के मध्य पवित्र संबंध था।।इस काल मे आर्यो का बहुत विस्तार हो चुका था। इन्होंने लोहा का व्यवहार करना शुरू कर दिया था। जिससे जंगल (अरण्य) बहुत शीघ्रता से काटे जाने लगे थे। कृषि कार्य भी काफी द्रुतगति से होने लगा। ब्राह्मणों का महत्व इस युग में काफी बढ़ गया था। वर्ण व्यवस्था पूर्व की अपेक्षा बहुत सुदृढ़ हो गई थी। इस यिग में विभिन्न पेशे सर संबंधित व्यवसायियों के नाम भी मिलते है जैसे:- बढ़ई, रथकार, सुनार, गायक, कुम्हार, नर्तक, मछुआ, कर्षक, रजक इत्यादि। ये लोग अपने-अपने व्यवसाय में तल्लीन रहते थे। परन्तु वर्ण के हिसाब से इन्हें कहाँ और किस कोटि में रखा जाता था, यह कहना कठिन है। कारण, हैं कि ऋग्वेद में एक ही।परिवार में कई तरह के लोग रहते थे। ऐसा मालूम पड़ता है कि उस समय एक।ही परिवार के सदस्य धन की प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार के पेशे में लगे रहते।होंगे, परन्तु बाद में जब इन उपयोगी काम करनेवाले लोगों को हेय दूष्टि से देखा जाने लगा तब ये लोग नीचे के वर्ण में धकेल दिये गये होंगे । सोलह प्रकार के ब्राह्मणों में पुरोहित सबसे ऊपर चले गये। क्षत्रियों में कई शाखाएँ हो गयीं कृषि, गोपालन, व्यापार और विभिन्न उद्योगों के विकास से वैश्यों में भी बग्गीकरण होना।आवश्यक ही था और उसी प्रकार शूद्रों में भी विभाजन हो गया । इस तरह।बहुत उप-जातियाँ धीरे-धीरे दृढ़ होती गयीं और कालान्तर में एक-दूसरे से अलग होकर बढ़ने लगीं । आर्थिक शोषण की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी और राज्य अब इस प्रक्रिया का पोषक बन गया।
ब्राह्मणों की प्रधानता समाज में बढ़ गयी और क्षत्रियों के चारों ओर राजनीतिक-सामाजिक इकाइयाँ घूमने लगीं तथा शुद्र का अपना कोई स्वतन्त्र व्यक्तित्व और अस्तित्व नहीं रह गया। वर्ण जन्म पर।आधारित हो गया, कर्मगत नहीं रहा। इसका बड़ा बुरा प्रभाव समाज पर पड़ा।
एतरेय ब्राह्मण ग्रंथ में उल्लेख है कि आर्यो का प्रसार काफी दूर दूर तक हो चुका था। आर्यो की सीमा हिमालय से दूर उत्तरकुरु और उत्तरमद्र के प्रेदेशों और मद्र से केकर यमुना और चम्बल के दक्षिण सत्वतों (भोजों) के देश तज फैली थी। दूसरी ओर पश्चिम में नीच्य और अपाच्य लोगों के राज्य से पूर्व में प्राच्यों के राज्य तक फैली थी। वैदिक काल मे आर्यो का राजनीतिक आधार जन था। उत्तर वैदिककाल में जनपद के विकास हुआ। राज्य की कल्पना भोत्तिक आधार पर होने लगी। बोधग्रंथो में ऐसे बहुत से जनवाद का उल्लेख मिला है। उस समय भारत मे केंद्रीय सत्ता का आभाव था। छोटे छोटे जनपदों को मिलाकर महाजनपद का निर्माण हुआ। ऐसे 16 महाजनपदों का उल्लेख बोधग्रंथो में हुआ है।

अंग-मगध, काशी-कोशल , वज्जि-मल्ल, चेदि-वत्स, कुरु-पंचाल, मत्स्य-सूरसेन, अस्मक-अवन्ती और गान्धार-कम्बोज सोलह महाजनपद थे। अगुंत्तरनिकाय में इन सोलह महाजनपद का वर्णन है।
अंग, मगध, काशी, कोशल , वज्जि, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पंचाल, मत्स्य, सूरसेन, अस्मक, अवन्ती, गान्धार और कम्बोज।
इस युग को महाजनपदों का युग कहा जाता था।

● मगध साम्राज्य का उत्कर्ष ●●

मगध की राजधानी राजगृह भी चम्पा की तरह की नगरियों में से एक थी। उस समय राजगृह अपने वैभव के लिए प्रसिद्ध था । बाहद्रथबंश का राज्य इस समय.तक समाप्त हो चुका था; परन्तु इसके बाद मगध पर कई राजवंशों ने शासन किया।
प्रारम्भ में मगध का उतना महत्त्व नहीं था; परन्तु बाद में इसने बड़ी उन्नति की । मगध में पटना और गया के आधुनिक जिले सम्मिलित थे। प्राग्खुधकाल में बृहद्रथ और जरासंध यहाँ के प्रमुख शासक थे।
यह महाभारत कालीन थे। निपुनजय ,बृहद्रथ वंश का अंतिम शासक था। इनके मंत्री पुलिक ने इसकी हत्या करवाकर अपने पुत्र को मगध का शासक बनाया।
मगध और अंग एक दूसरे के पड़ोसी राज्य थे। इन दोनों राज्यों के मध्य अक्सर मुढ़भेड़ होती थी। काशी और कौशल महाजनदों के बीच भी बराबर संघर्ष होता रहता था। ई.पु. छठी शताब्दी में समस्त उत्तरभारत में राज्यों के आधिपत्य के लिए जो संघर्ष चल रहा था उनमे मुख्य रूप से अवंति, कौशल, अंग वत्स और मगध सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे। इस लंबे संघर्ष से ही भारत के इतिहास का एक नया युग का शुरुआत हुआ जिसे मगध के उत्कर्ष के नाम से जानते है।

अवंति ने सवर्प्रथम अपना साम्रज्य बढ़ाना शुरू किया। राजा प्रधोत उस वक्त अवन्ति का शासक था। उसके सभी पड़ोसी राज्य उससे डरते थे। अवंति की राजधानी उज्जयिनी बहुत ही महत्व नगरी थी। अवंति के इर मथुरा और दूसरी ओर कौशाम्बी थी। कौशाम्बी वत्स राज “उदयन” का केंद्र था। उदयन बहुत ही वीर ,रसिक और सुन्दर था। प्रधोत ने एक षडयंत्र रचकर उदयन को गिरफ्तार कर लिया, किंतु बाद में उदयन ने राजा प्रधोत की पुत्री वासवदत्ता को लेकर भाग गया। जब यह घटनाक्रम अवन्ति और कौशाम्बी के बिच हो रहा था उसी वक्त कौशल और मगध के बीच भी संघर्ष बढ़ता जा रहा था। उसी वक्त बिम्बिसार ने अंग को जीतकर मगध साम्राज्य में मिला लिया।

600 ई.पूर्व में सोलह महाजनपद

◆ बिम्बिसार (544 ई.पू-492 ई.पू)

बिम्बिसार (544 ई.पू.) पंद्रह वर्ष की उम्र में मगध का नरेश बना था। उसने गिरिब्रज (आधुनिक राजगीर)को अपनी राजधानी बनाकर हर्यक वंश की नींव डाली। उसने अपने पड़ोसियों से वैवाहिक संबंध स्थापित किये। बिम्बिसार ने अंग राज्य को जीतकर मगध साम्राज्य में मिला लिया ।उसने अंग राज्य के चंपा बंदरगाह को अपने कब्जे में कर लिया जिसके कारण मगध के व्यापार और वाणिज्य में भारी वृद्धि हुई। बिम्बिसार, कोशलनरेश पसेनेदि का बहनोई था उसे काशी दहेज मे मिली थी। उसने सुदूर देशों से संबंध स्थापित किए, तथा गांधार राज्य तक में अपने दूत भेजे पुराणों के अनुसार उसने 28 वर्ष मगध पर शासन किया। कुशल प्रशासन की आवश्यकता पर सर्वप्रथम बिम्बिसार ने ही जोर दिया। उसने कोशल एंवं वैशाली के राजपरिवारों से अपने संबध स्थापित किए।अंतिम समय में आजात- शत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर दी ।

◆ आजातशत्रु (492 ई.पू-460ई.पू)

यह मगध साम्राज्य जा प्रतापी राजा था। उसने अपने पिता विम्बिसार को हत्या कर गद्दी हासिल को थो।उसका बचपन का नाम कुणिक था। आरम्भ से हो अजातशत्रु ने विस्तार की नीति अपनाई।
काशी को लेकर अजातशत्रु का कोशल नरेश से बुद्ध हुआ था। आज़ादशत्रु के गद्दी पर बैठते ही कौशल और मगध में अनबन बढ़ गयी और कोशलनरेश पसेनेदि ने काशी ज़ब्त कर ली। जैन त्रंथ भगवती सूत्र के अनुसार अजातशत्रु का वज्जि संघ के साथ भी युद्ध हुआ था। अजातशत्रु ने अपने मंत्री वस्सकार की सहायता से लिय्छवियों की एकता को भंग कर उनकी शक्ति पर विजय पायी।
प्रथम बोद्ध संगीति का आयोजन अजातशत्रु के शासन काल में ही सम्पन्न हुआ था। इसके शासनकाल में मगध की सीमाओं, गौरव तथा शक्ति में अपार वृद्धि हुई। काशी एवं वज्जि संघ की लड़ाई में अजातशत्रु ने रथमूसलों एवं महाशिलाकण्टक नाम के हथियारों का प्रयोग किया था । उसने आपनी राजधानी राजगृह की सुरक्षा के लिए एक मजबूत दुर्ग का निर्माण करवाया था।

Post navigation

Previous Post:

मोबाइल हैंग क्यों हो जाती है।

Next Post:

महात्मा बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

  • स्मार्टफोन को स्मार्ट बनाये
  • सुमित्रानंदन पंत की जन्मभूमि
  • टाटा जल विधुत परियोजना
  • प्रमुख उत्पादक राज्य
  • कण्व वंश

Recent Comments

  • santosh kumar on महात्मा बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग

Archives

  • April 2023
  • March 2023
  • December 2022
  • September 2022
  • November 2021
  • September 2021
  • August 2021
  • June 2021
  • May 2021
  • March 2021
  • December 2020
  • October 2020
  • September 2020
  • July 2020
  • May 2020
  • April 2020
  • February 2020
  • January 2020
  • December 2019
  • November 2019
  • October 2019
  • September 2019
  • August 2019
  • July 2019
  • May 2019

Categories

  • Uncategorized
  • इतिहास
  • इनकम टैक्स
  • कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स
  • चिकित्सा विज्ञान
  • नदियाँ
  • पादप जगत (BOTONY)
  • भारत के राज्य
  • भूगोल
  • विज्ञान :- भौतिकी
  • संविधान

Meta

  • Log in
  • Entries feed
  • Comments feed
  • WordPress.org

कैलेंडर

June 2023
M T W T F S S
 1234
567891011
12131415161718
19202122232425
2627282930  
« Apr    
© 2023 Make green our planet | WordPress Theme by Superbthemes