भारतवर्ष के सोलह महाजनपद

आर्यो ने सवर्प्रथम पंजाब और अफगानिस्तान के क्षेत्र में आकर बसे और अपने अगले पड़ाव में कुरुक्षेत्र के निकट के प्रेदेशों पर कब्ज़ा कर उस क्षेत्र का नाम ‘ब्रह्म ऋषि देश’ रखा। आर्य अफगानिस्तान से होते हुए भारत आये थे। प्रमाणस्वरूप वहाँ की नदियों जैसे- कुंभा (काबुल), कूर्म(कुर्रम), सुवास्तु (स्वात), गोमती (गोमल) का उल्लेख वैदिक साहित्य में प्राप्त होती है। ऋग्वेद में आर्यो के निवासस्थल के लिए सर्वत्र सप्तसिंधवः प्रदेश का वर्णन है।, जिसका वर्णन पंजाब की सात नदियों से है।
आर्यो का प्रसार काफी दूर-दूर तक हो गया था। आर्यो की सीमा एक ओर हिमालय से दूर उत्तरकुरु और उत्तरमद्र के देशों से यमुना और चम्बल के दक्षिण सत्वतों के देश तक फैल गई थी। इसका विवरण ‘एतरेय ब्राह्मण’ में मिलता है। आर्यो ने पश्चिम में निच्य और अपाच्य लोगों के राज्य से पुर्व में प्राच्यों के राज्यो तक फैली हुई थी।
* वेद शब्द की उत्पत्ति ‘विद्’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है ‘ज्ञान की पराकाष्ठा’
* वेदों तथा उपनिषदों को ‘श्रुति’ भी कहा गया है, जिसका मतलब है ‘देव प्रदत ज्ञान’ वैदिक साहित्य को दो भागों में विभाजित किया जाता है। 1.सहिंता- जिसकेअंतर्गत चारों वेद आते है। 2. ब्राह्मण, अरण्यक और उपनिषद आते है।
वैदिक काल मे आर्यो का सबसे प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद (1500-1000 ई.पू.) है।
वैदिककाल में आर्यो का राजनीतिक आधार जन थी। उत्तर-वैदिक काल मेंं जनपद का विकास हुुुआ और राज्य की कल्पना भोगोलिक आधार पर होंने लगी।
बोधग्रंथो में ऐसे जनपदों का उल्लेख मिलता है। अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग राज्यों के होने का जो प्रमाण मिलता है, उसके आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि उस छोटे-छोटे जनपदों को मिला- कर महाजनपदों का निर्माण हुआ और ऐसे ‘सोलह’ या ‘षोडस” महाजनपदों का उल्लेख हमें बौद्धसाहित्य में मिलता है । ‘अंगुत्तरनिकाय’ में इन सोलह महाजन-
पदों का वर्णन इस प्रकार है-अंग, मगध, काशी, कोशल, वज्जि, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पंचाल, मत्स्य, सूरसेन, अस्मक, अवन्ती, गान्धार, कम्बोज । ‘जैन भगवतीसूत्र’ में इनका वर्णन इस प्रकार है-अंग, बंग, मगह, मलय, मालव, अच्छ, वच्छ, कच्छ, दोनों सुचियों में अंग, मगध, वत्स, बज्जि, काशी और कोशल समान हैं । जैनसुुची में मालव और मोलि बौद्धसुची के क्रमशः अवन्ती और मल्ल हैं । शेष जनपदों में अन्तर है । बौद्ध- साहित्य में कुछ गणराज्यों के उल्लेख इस प्रकार हैं।
##-कपिलवस्तु के शाक्य, रामगाम के कोलिय, पावा के मल्ल, कुशीनारा के मल्ल, मिथिला के विदेह, पिप्पलवन के मोरिय, सुंसुमारपर्वत के भग्ग, अलकष्प के बुलि, केसपुत्त के कलाम, वैशाली के लिच्छवी।
समय भारत में केन्द्रोय सत्ता का सर्वथा अभाव था ।
इस युग को महाजनपदों का पुग कहा जाता है । सोलह महाजनपदों की ये आठ पड़ोसी जोड़ियाँ गिनी जाती थीं- अंग-मगध, काशी-कोशल , वज्जि-मल्ल, चेदि-वत्स, कुरु-पंचाल, मत्स्य-सूरसेन, अस्मक-अवन्ती और गान्धार-कम्बोज । प्रत्येक राज्य अपने-आपमें स्वतंत्र था ।
** अंग **
यह मगध के ठीक पूरब था । इसकी राजधानी चम्पा (मालिनी) में थी।
भागलपुर (बिहार) का चम्पानगर आज भी इसकी धरोहर के रूप में सुरक्षित है। चम्पा उस समय भारतवर्ष की सबसे प्रसिद्ध नगरियों में से थी । चम्पा कला, संस्कृति सभ्यता तथा व्यापार का केन्द्र थी ।
इस राज्य ने विशेष उन्नति की; परन्तु बाद में इसकी शक्ति का ह्रास होना आरम्भ हो गया। इसका मगध से सदा संघर्ष होता रहता था और अन्त में मगध ने इस राज्य को पराजित कर अपने में मिला लिया। बुद्ध-कालीन छः बड़े नगरों में चम्पा की गणना की गयी है । विधुरपण्डितजातक के अनुसार प्रारम्भ में राजगृह अंग का ही एक नगर था ।
◆◆ मगध ◆◆
-मगध की राजधानी राजगृह चम्पा की तरह की नगरियों में से एक थी। उस समय राजगृह अपने वैभव के लिए प्रसिद्ध था । बाहद्रथबंश का राज्य इस समय तक समाप्त हो चुका था; परन्तु इसके बाद मगध पर कई राजवंशों ने शासन किया।
प्रारम्भ में मगध का उतना महत्त्व नहीं था; परन्तु बाद में इसने बड़ी उन्नति की । मगध में पटना और गया के आधुनिक जिले सम्मिलित थे। प्राग्खुधकाल में बृहद्रथ और जरासंध यहाँ के प्रमुख शासक थे।
◆◆◆ काशी ◆◆◆
काशी-इसकी राजधानी वाराणसी थी, जो वरुणा और असी नदियों के संगम यह नगरी बारह योजनों में विस्तृत थी और किसी समय भारत की जैन तीर्थंकर पाश्श्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के राजा थे ।
ब्रह्मवत्तों के शासनकाल में यह नगरी बहुत फूली-फली थी। ‘महावग्ग’ में भी काशी का उल्लेख है। वैभव, शिल्प, बुद्धि एवं ज्ञान के लिए यह नगर बहुत प्रसिद्ध था । इसका कोशल राज्य से विशेष संघर्ष रहता था । काशी राज्य की शक्ति इस संघर्ष के चलते दिन-प्रतिदिन कम होती चली गयी और बाद में इसका पतन हो गया।
◆◆◆ कौशल ◆◆◆
कोशल-उत्तरप्रदेश के मध्य में उत्तर की ओर कोशल राज्य स्थित था । इसकी राजधानी श्रावस्ती थी । अयोध्या का महत्त्व इस समय तक कम हो गया था औरश्रावस्ती का महत्त्व दिनानुदिन बढ़ता जा रहा था । काशी के साथ इसका संघर्ष रहता था, जो काफी दिनों तक चला । काशी के अस्तित्व का अन्त कर कोशलराजाओं ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया। प्रिसिद्ध वणिक्पथ पर अवस्थित होने के कारण श्रावस्ती का व्यापारिक महत्त्व भी काफी बढ़ गया था । कोशल के एक राजा कंस को पालिग्रन्थों में ‘बारानसिग्गहो’ कहा गया है । उसी ने काशी को जीतकर कोशल में मिला लिया था। शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु इसी कोशल राज्य के अन्तर्गत थी।
◆◆◆ वज़्ज़ि ◆◆◆
बृज्जि-यह आठ राज्यों का एक संघ था, जिसमें लिच्छवि, विदेह और ज्ञात्रिक विशेष महत्त्वपूर्ण थे । इस संघ की राजधानी वैशाली थी। ये सभी उत्तर बिहार में विस्तृत है।। बुद्ध के समय तक ‘वज्जिसंघ’ विद्यमान था । पाणिनि और कौटिल्य ने भी वृज्जियों का उल्लेख किया है । यहाँ गणतंत्र शासन पद्धति थी। वज़्ज़ि शासन में प्रत्येक गाँव के सरदार को राजा कहा जाता था। राज्य के विस्तृत और सामूहिक कार्यो का विचार एक परिषद में होता था। जिसके सदस्य ये सभी राजा भी होते थे।
◆◆◆ मल्ल◆◆◆
मल्ल :- यह वज़्ज़ि के पड़ोसी जनपद थे। इनका भी अपना अलग गणराज्य था। यह गणराज्य वज़्ज़ि गणराज्य के उत्तर-पश्चिम में और कौशल के पूर्व में अवस्थित था। मल्ल गणराज्य दो भागों में विभाजित था। एक भाग की राजधानी पावापुरी तयह दूसरे भाग की राजधानी कुशीनगर थी। कुशीनगर में ही भगवान बुद्ध का देहावसान हुआ था। महाभारत में मल्ल के दोनों राज्यों का उल्लेख है।