प्रागेतिहासिक कालिन जीवन
प्रागेतिहासिक काल मानव जीवन का प्रारम्भिक् काल है। आधुनिक समय तक लोगों को विश्वास था की मनुष्य
एक् ईश्वरीय सर्जन है। किंतु विकासवादी सिद्धान्त के प्रतिवादक चार्ल्स डार्विन ने 1859 ई. में इसका खंडन किया। उनके अनुसार मानव सभ्यता का विकास शनैः शनैः हुआ और यह विकास का प्रतिफल है। इस विचारधारा के अनुसार प्रारंभ में पृथ्वी का तापमान इतना ज्यादा था कि इस पर किसी जीवन का अस्तित्व सम्भव नही था। शनैः शनैः धरती का तापमान कम होने लगा। हज़ारों वर्षों के इन परिवर्तनों के बाद पृथ्वी की जलवायु जीवन की उत्पत्ति के अनुकूल हो गई। यधपि इस युग में पृथ्वी पर जीवन का होना संभव हो गया था, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि पृथ्वी पर कुछ समय तक जीवन की उत्पत्ति नहीं हुई थीं। इसलिए यह युग ‘ जीव विहीन’ युग के नाम से प्रसिद्ध है।
चार्ल्स डार्विन के अनुसार ‘ जीव विहिन’ युग के अंत मे सर्वप्रथम जन्म लेने वाले जीव पनीले जंतु थे जो अस्थि विहीन थे। पनीले जीव की शारीरिक बनावट में समायकुल परिवर्तन होने लगे और हज़ारों वर्षो के बाद इन्होंने मछ्ली का रूप धारण कर लिया। चार्ल्स डार्विन मछली के रूप में इन जीवों के परिवर्तन को विकास की दूसरी अवस्था मानते है।
तीसरी तीसरी अवस्था मे बृहद जीवों अथार्त बृहद शरीर वाले जानवर उत्पन्न होने लगे। इस वक्त तक पृथ्वी पर बड़े बड़े पेड़ और पौधे उगने लगे थे। विशाल तालाबो,झीलों तथा नदियों के तट पर इन जंगलो में बृहद जीव पेट के बल रेंगते थे। इनकी उत्पत्ति और वृद्धि अंडो के द्वारा होती थी।इन जंतुओं का शरीर विशाल और बृहद होने के कारण अपना शरीर संभालने ने बहुत ज्यादा कष्ट का सामना करना पड़ता था। अंत मे ये जीव परिस्थितियों के अनुकूल अपने को परिवर्तन करना शुरू कर दिया। और इनके शरीर आकार छोटा होने लगा। इसी समय आकाश में उड़ने वाले पंछियों का भी जन्म शुरू हुआ।