पेड़-पौधे का नामकरण
सन् 1753 ई० में रवीडन के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक लीनियस (Iinnacus) ने पेड़-गोधो का नामकरण किया था । नामकरण की इनकी पद्धति द्विनाम पद्धति (binomial system) के नाम से प्रसिद्ध है । इसके अन्तर्गत हर पौधेका नाम दो भागों में लिखा जाता है। इसलिए इसे द्विनाम (binomial : binominis{two names) कहते हैं । पहला हिस्सा पोधे का प्रजातीय नाम (generic name) बताता है और दूसरा या बाद वाला भाग उसका जातीय नाम (specific name) बताता है। उदाहरणके तौर पर सरसों के पौधेका प्रजातीय नाम बैसिका (Brassica) है। इसी प्रजाति के अन्तर्गत सरसों की कई जातियां हैं, जैसे पीली सरसों, सफ़ेद सरसों, काली सरसों तथा राई प्रत्येक प्रकार की सरसों की जाति का नाम अलग-अलग होती है, जैसे पीली सरसोंकी जाति का नाम है कैम्पेस्ट्रिस (campestris), सफ़ेद सरसों का हिरटा (/hirta), काली सरसों का निग्रा (nigra) तथा राई का जन्सिया (juncea)।
यदि हमें विशेष रूप से सरसों की पीली किस्म का नाम लेना है तो लिखेंगे ब्रैसिका कम्पेस्ट्रिस (Brassiaa campestris) । प्रजातीय तथा जातीय नाम लैटिन (Latin) या ग्रीक (Greek) भाषा में होते हैं। प्रजातीय नामको पहला अक्षर अंग्रेजी के बड़े अक्षर से लिखा जाता है और जातीय नाम का छोटे अक्षर से लिखते है। पूरा नाम अंग्रेज़ी में झुके अक्षर यानी italic में लिखते हैं।