पूर्व वैदिक सभ्यता:- सिंधु नदी घाटी सभ्यता
पूर्व वैदिक काल मे सिंधु घाटी सभ्यता वैदिक सभ्यता से बिल्कुल अलग और प्राचीन थी। सिंधु घाटी सभ्यता शहरी एवं व्यापार प्रधान सभ्यता थी जबकि वैदिक सभ्यता ग्राम्य एवं कृषि प्रधान थी। सिंधु वासी मूर्तिपूजक थे,आर्य मूर्तिपूजक नही थे। सिंधु प्रदेश के लोग लिंगपूजा के समर्थक थे जबकि आर्य लिंगपूजा की निंदा करते थे। आर्य लोग गाय को महत्व दिया देते थे जबकि सिंधु वासी सांड को अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। सिंधु घाटी सभ्यता मातृ-सत्तात्मक समाज था, जबकि वैदिक आर्य सभ्यता पितृसत्तात्मक समाज के समर्थक थे। भारतीय समाज पर सिंधु घाटी सभ्यता का प्रभाव अभी भी दिखता है। जादू टोना, शक्तिपूजा, लिंग-योनि पूजा,तंत्र-मंत्र , योग्याभ्यास जैसे अन्य प्रथाओं को हिंदुओं ने सिंधु सभ्यता से ही ग्रहण किया है। सिंधु घाटी का सांस्कृतिक प्रभाव को आर्यो ने भी अपने धर्मो का प्रमुख अंग स्वीकार कर लिया। सिंधु घाटी सभ्यता के अंत किस प्रकार हुआ इसका कारण पूर्ण रूप से ज्ञात नही हो पाया है। अनुमान के मुताबिक सिंधु नदी की बाढ़ से इस सभ्यता का अंत हुआ होगा या जलवायु परिवर्तन के कारण इसके खंडहरों का विनाश हुआ हो।
सिंधु घाटी सभ्यता
यह भारत की प्रथम नागरिक सभ्यता थी। यह मुख्यतः सिन्धु नदी और उसके आसपास के क्षेत्रों में विकसित हुई। यह कांस्ययुगीन सभ्यता थी। इसका विस्तार भारत के उत्तर में जम्बू से दक्षिण में नर्मदा घाटी ,पश्चिम में मकरान की खाड़ी से पूर्व में मेरठ तक है। इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता हैं, क्योंकि सबसे पहले पुरातत्ववेत्ता दयाराम साहनी ने 1921 ई. में हड़प्पा नामक स्थल पर खुदाई करवायी और उसी खुदाई के दौरान इस सभ्यता का पता चला है।
सिंधु नदी घाटी सभ्यता लगभग 1,299,600 वर्ग-किलोमीटर में विस्तृत है जो मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यता से भी बड़ी है। वर्तमान तक इस सभ्यता के छोटे-बड़े 1000 केंद्रों का पता लग चुका है। इस सभ्यता के सड़के 90° के समकोण पर एक दूसरे को काटती थी। नालो का समुचित रूप से वितरण किया गया था। सभी छोटे नाले बड़े नालो से मिलते थे।
इस सभ्यता का का विकास का क्रमिक रूप से विकास हुआ। अफगानिस्तान में कुली, गुल मुहम्मद जैसे स्थल इसके केंद्र थे। यह एक पूर्ण भारतीय सभ्यता थी। इस सभ्यता का विकास 2500 ई..पू से 1800 ई.पू. तक विकसित हुई। कार्बन डेटिंग पध्दति के आधार पर इसकी अवधि 2300 ई.पू. से 1750 ई.पू तक निर्धारित की गयी है।
इस सभ्यता में पक्की ईटो का प्रयोग किया गया था। अलग अलग कार्यो के लिए अलग अलग प्रकार के ईट का उपयोग किया गया था। इस सभ्यता में अन्न भंडार गृह भी बने थे। इस सभ्यता के प्रिसिद्व बंदरगाह गुजरात के काठियावाड़ जिले में अवस्तिथ भोगावा नदी के तट पर लोथल है। इस सभ्यता के निवासियों को लिपि का ज्ञान था।