पुनर्जागरण:- आधुनिक युग का आगमन
आधुनिक युग का आगमन
पुनर्जागरण

* पुनर्जागरण ने यूरोप के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर स्थापित कैथोलिक चर्च के प्रभुत्व को कमजोर किया। पुनर्जागरण का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य धर्म कला, विज्ञान इत्यादि के क्षेत्र में मानवतावादी विचारधारा को स्थापित करना था।
* इसने धार्मिक तपस्या का विरोध किया एवं मानव के सुख-भोग के अधिकार को प्रश्रय दिया।
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पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ पुनर्जन्म है। यह फ्रांसीसी शब्द रिनेंसा (Rennaissance) का पर्याय है। पुनर्जागरण (Rcnaissance) शब्द का प्रयोग यूनान और रोम की प्राचीन सभ्यता के ज्ञान-विज्ञान के प्रति फिर से पैदा हुई रुचि के लिए होता है। यह केवल प्राचीन ज्ञान की जानकारी तक सीमित नहीं था, बल्कि इसका संबंध कला,साहित्य, धर्म, दर्शन, विज्ञान और राजनीति के क्षेत्र में हुए परिवर्तनों से भी है।
पुनर्जागरण का प्रारंभ इटली में हुआ, क्योंकि यूरोप और पूर्व के देशों के बीच पुनरुत्थान ने इतालवी शहरों को सर्वाधिक समृद्ध बना दिया था।
यह आमतौर पर उस काल के लिए प्रयुक्त होता है जो लगभग 1300 ई० से प्रारम्भ हुआ और जब लोगों ने प्राचीन यूनान और रोम के ज्ञान-विज्ञान में दिलचस्पी लेनी शुरू की। वस्तुतः पुनर्जागरण उन समस्त बौद्धिक परिवर्तनों को बतलाता है जो मध्ययुग के अंत और आधुनिक युग के आरम्भ में दिखलाई पड़े। फलतः यूरोपीय साहित्य, दर्शन, कला-विज्ञान आदि विकासोन्मुख हुआ। इसके निम्नलिखित कारण थे :-
कुस्तुनतुनिया का पतन : रोमन सम्राट् काँन्स्टेनटाइन ने रोमन साम्राज्य के पूर्वी प्रदेशों की एक नई राजधानी 330 ई० में प्राचीन यूनानी नगर बिजेण्टाइन (Byzantine) में स्थापित की थी। इस नगर का नाम कान्स्टेनटाइन के नाम पर कौँस्टेनटिनोपल (कुस्तुनतुनिया)
पड़ा और वह इसी नाम से विख्यात हुआ। पश्चिम में रोमन साम्राज्य को बर्बर लोगों के आक्रमण ने नष्ट कर दिया, लेकिन पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी कुस्तुनतुनिया एक हजार वर्ष तक सुरक्षित रही। कुस्तुनतुनिया यूरोप का सबसे बड़ा नगर था। यहाँ कट्टर पंथी या आर्यडॉक्स चर्च था। आजकल भी पूर्वी देशों के अनेक ईसाई इसी शाखा के अनुयायी हैं। यहाँ सेंट सोफिया का चर्च बड़ा मशहूर था।
1453 ई० में सल्जुक तुरकों ने कुस्तुनतुनिया को जीत लिया। इससे पूर्वी रोमन साम्राज्य का भाग्य सितारा सदा के लिए डूब गया । यहाँ से अनेक विद्वान् यूरोपीय शहरों की ओर चल पड़े। इटली का फ्लोरेंस नगर पुनर्जागरण का केन्द्र बन गया । ये विद्वान् अपने साथ यूनान और रोम के प्राचीन दर्शन और साहित्य अपने साथ लाए थे। वे अपने प्रकाश और ज्ञान को लोगों तक पहुँचाने लगे। यूनान और रोम के विस्मृत साहित्य-दर्शन लोगों ने बड़े चाव से अध्ययन करना शुरू किया। ज्ञान-रश्मि पुनः एक बार यूरापीय क्षितिज पर बिखर गई।
पूर्व और पश्चिम का सम्पर्क :
पूर्वी देशों का पश्चिमी देशों के साथ धर्मयुद्ध (crusade), व्यापार एवं संस्कृति के माध्यम से सम्पर्क कायम हुआ। धर्मयुद्ध लगभग के शताब्दियों तक जारी रहा। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्वी संस्कृति को पश्चिमी देशों में प्रचार करना था। इस्लामी साम्राज्य के अन्तर्गत विद्या का प्रसार अधिक हो रहा था। अरब शिक्षण-पद्धति स्पेन, सिसली और यूरोप के अन्य देशों में फैल गई । धर्मयुद्ध के लड़ाकू मिस्त्र तथा अन्य देशों में गए तथा उन्होंने वहाँ इस्लामी सभ्यता को पनपने की जमीन तैयार कर दी। पीछे चलकर इन्हीं लोगों ने यूरोप में भी बौद्धिक पुनर्जागरण की नींव डाली।
13वीं और14वीं शताब्दियों में यूरोप में अनेक विश्व-विद्यालय खोले गए जहाँ दर्शन-साहित्य का अध्ययन-अध्यापन किया जाने लगा । व्यापार ने भी पूर्वी सभ्यता-संस्कृति का पश्चिमी देशों से सम्पर्क स्थापित किया। पश्चिमी लोगों ने अरबों की तर्क पद्धति, प्रयोग पद्धति एवं वैज्ञानिक खोजों की बड़ी तारीफ की। उन्हें अरब और चीन से कुतुबनुमा, रेशम, कागज एवं औषधि की जानकारी मिली।
** व्यापार का उदय : 13वीं-14वीं शताब्दियों में यूरोपीय व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर होने लगा भारत और चीन से व्यापारिक संबंध कायम हुए। व्यापार ने नए-नए नगरों को जन्म दिया। व्यापारिक मंडियाँ और नगर कायम हुए। शहरों के विकास ने मानव जीवन
को प्रभावित किया। शहरों का वातावरण स्वतंत्र होता है। इस स्वतंत्र वातावरण मे विचार स्वातंत्र्य का विकास होना स्वाभाविक था ।
** मगोल साम्राज्य का उदय : मंगोलों ने चंगेज खौँ के नेतृत्व में विश्व में अपना साम्राज्य-विस्तार प्रारम्भ कर दिया। चंगेज खाँ के बाद ओगदाय खौँ मंगोलों का नेता हुआ। उसने यूरोपीय देशों को जीतना शुरू किया। रूस का अधिकांश भाग मंगोल साम्राज्य अंग बन गया। पोलैंड और हंगरी भी मंगोलों के शिकार बने। मंगोल साम्राज्य की प्रतिष्ठा कुबला खां के समय चारों ओर फैल गई। उसका दरबार विद्वानों, धर्म प्रचारकों तथा व्यापारियों से खचाखच भरा रहता था इसी समय वेनिस का सौदागर मार्कोपोली वहाँ पहुँचा था।
उसके यात्रा-विवरण ने यूरोप को काफी प्रभावित किया। इन दिनों चीन बहुत आगे बढ़ा” हुआ था। यहाँ पर गौला-बारूद, कागज तथा दिशा सूचक यंत्र का आविष्कार हो चुका था। इन सभी चीजों की तकनीक सीखकर पश्चिमी देशों ने इनका प्रयोग करना शुरू किया। इस प्रकार, मंगोल साम्राज्य ने अपने संचित ज्ञान-विज्ञान का भांडार यूरोपीय देशों के लिए खोल दिया। इससे पुनर्जागरण प्रभावित हुआ।
कागज और छापाखाना : चीन ने पहले – पहल कागज का आविष्कार किया। किंतु, इससे भी अधिक महत्त्व छापाखाने के आविष्कार का था । 1450 ई० में जर्मन निवासी गुटनवर्ग ने छापाखाने का आविष्कार किया। 1477 ई० में कैक्सटन ने इंगलैंड में छापाखाने का प्रचार किया। उसी समय वहाँ पुस्तकों की छपाई शुरू हुई। धीरे-धीरे अन्य यूरोपीय देशों में इसका प्रचार हुआ। छापाखाने का आविष्कार हो जाने से पुस्तकों का प्रकाशन आसान हो गया। उनका मूल्य भी कम होने लगा। आम लोग भी किताब खरीद कर पढ़ने लगे । पुनर्जागरण इससे प्रभावित हुआ।
मध्य युग का पांडित्य पंथ :
13वीं शताब्दी में ही पांडित्य पंथ चल पड़ा। एबेलार्ड और टॉमस एक्विनास इसके प्रवर्त्तक थे। इसका विषय अरस्तु का तर्कशास्त्र और संत अगस्ताइन का तत्व ज्ञान था। इसके अनुसार चर्च के धार्मिक सिद्धान्तों पर वाद-विवाद होने लगा तथा यूनानी दर्शन के कुछ सिद्धान्तों पर वैज्ञानिक विचार पद्धति का जन्म हुआ। किंतु पांडित्य पंथ (scholasticism) अधिक दिनों तक टिक नहीं सका क्योंकि इसमे बौद्धिक तत्त्व एवं तर्क की प्रधानता थी। आम लोग इसे नहीं समझ सकते थे। यही कारण था कि प्रसिद्ध दार्शनिक रोजर वेकन ने पांडित्य पंथ का विरोध किया। वह तर्क पत बहुत जोर देता था तथा पर्यवेक्षण और प्रयोग पर बल देता था । उसकी इस बैज्ञानिक पद्धति पुनर्जमरण को प्रभावित किया