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टाटा जल विधुत परियोजना

December 27, 2022 by nextgyan

भारत की अपने समय की सबसे महत्वपूर्ण जल-विद्युत् परियोजना रही है। इसे पश्चिमी घाट में विकसित किया गया। टाटा जल विद्युत् कम्पनी ने सन् 1901 मैं भोरघाट के ऊपर बाँध बनाकर लोनवाला, बलहान और शिवरता नामक तीन झीलें तैयार की। इन झीलों में वर्षा का जल इकट्ठा किया जाता है और नहरों द्वारा लोनवाला झील तक लाया जाता है। यहाँ से इसे नलों द्वारा 510 मीटर की ऊँचाई से खोपोली शक्तिगृह के पास गिराया जाता है। इससे 72,000 किलोवाट बिजली उत्पन्न ही जाती है। यह शक्ति 113 किलोमीटर दूर मुम्बई की मिलों को भेजी जाती है। निरन्तर बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए टाटा कम्पनी ने 1922 में आन्ध्र घाटी विद्युत् परियोजना आरम्भ की जिसके अन्तर्गत लोनवाला के उत्तर में आन्ध्र नदी पर 58 मीटर ऊँचा बाँध बनाकर नदी का जल रोका गया। यहाँ से 2651 मीटर लम्बी सुरंग द्वारा जल भीवपुरी के शक्तिगृह को ले जाकर 563 मीटर की ऊँचाई से गिराया जाता है। इस शक्तिगृह की उत्पादन क्षमता भी 72,000 किलोवाट है।
टाटा विद्युत् कम्पनी द्वारा तीसरी इकाई सन् 1927 में स्थापित की गयी इसके अन्तर्गत नीलामूला नदी को तुलसी नामक स्थान पर रोक दिया गया। इस झील के जल को 533 मीटर की ऊँचाई से भीरा के शक्तिगृह पर गिराकर विद्युत पैदा की जाती है। भीरा शक्तिगृह की उत्पादन क्षमता 432 हजार किलोवाट है। यह शक्तिगृह मुम्बई से 120 किलोमीटर दूर है। योजनाकाल में कोयना धरणी और पूर्णा जलविद्युत् परियोजनाओं तथा अकोला, घोल खापरखेड़ा एवं बल्लारशाह ताप-शक्तिगृहों का विकास किया गया है।

इन शक्तिगृहों से मुम्बई नगर एवं उसके निकटवर्ती स्थानों (ठाणे, कल्याण और पुणे) को विद्युत् आपूर्ति की जाती है इस सम्मिलित योजना से महाराष्ट्र के लगभग 2,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को विद्युत प्राप्त होती है।

◆ योजनाकाल में कोयना धरणी और पूर्णा जलविद्युत् परियोजनाओं तथा अकोला, घोल खापरखे एवं बल्लारशाह ताप-शक्तिगृहों का विकास किया गया है।

योजनाकाल में कोयना धरणी और पूर्णा जलविद्युत् परियोजनाओं तथा अकोला, घोल खापरखे एवं बल्लारशाह ताप-शक्तिगृहों का विकास किया गया है।
टाटा जल विधुत परियोजना रेखाचित्र

इन शक्तिगृहों से मुम्बई नगर एवं उसके निकटवर्ती स्थानों (ठाणे, कल्याण और पुणे) को विद्युत् आपूर्ति की जाती है इस सम्मिलित योजना से महाराष्ट्र के लगभग 2,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को विद्युत प्राप्त होती है। इन शक्तिगृहों को चोला वाष्प शक्तिगृह (क्षमता 136 हजार किलोवाट), कोयना शक्तिगृह से जोड़कर जल एवं
ताप -विद्युत् संघटन क्रम (Hydrothermal Grid) बनाया गया है। महाराष्ट्र के सभी साधनों से वर्तमान में 79,000 मेगावाट विद्युत् प्राप्त होती है।

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