काँच और रंगीन काँच का निर्माण कैसे करें

सवर्प्रथम आधुनिक काँच अलेग्जेंड्रिया में टोलेमिक युग मे बनाया गया था। इसके बाद रोम में काँच का निर्माण किया जाने लगा। मिस्र में बने काँच के मनकों (beads) का आभूषणों में उपयोग 2500 ई.पू. से होता आया हैं। काँच को साँचो में ढालकर उसको द्रवित आकार प्रदान करने की कला इन्ही आरंभिक युगों में विकसित हुई थी। सीरिया में काँच फूंकने की कला विकसित हुई थी। 1900 ई. तक काँच के निर्माण के दिशा ने कोई जोई विशेष उन्नति नही हुई थी। लेकिन आधुनिक युग मे रसायनशास्त्रियों के प्रयास से काँच के निर्माण में आश्चर्यजनक रूप से विकास किया गया।
काँच में कुछ असामान्य गुण पाए जाने के कारण काँच का उपयोग विभिन्न उद्देश्यो के लिए होने लगा। काँच का सवार्धिक उपयोग उसके प्रकाश के प्रति पारदर्शिता का गुण के कारण होता है। स्पष्ट और पारदर्शी काँच से दूरबीन एवं सूक्ष्मदर्शी का निर्माण संभव हो सका।
विशेष विधियों द्वारा निर्मित काँच को रंगीन चमचमाती हुई वस्तुओं को बनाने के लिये काटा जा सकता हैं। इसकी चादरे बनाई जा सकती है। साँचो में ढालकर अनेक आकृति के बर्तन एवं कलाकृतियों का निर्माण किया जा सकता हैं। काँच के फुकने की कला के द्वारा नालियाँ, तार एवं रेशे बनाये जा सकते है। वर्तमान में वल्ब,मर्करी, संघनक आदि का निर्माण कर प्रयोगशाला में उपयोग किया जाता हैं। क्योंकि काँच की ये वस्तुएँ उच्च उष्मा सहन करने में समर्थ है। तथा इन इन पर अम्ल और क्षारक का कोई प्रभाव नही पड़ता हैं।
रसनायिक संरचना
काँच का कोई निश्चित द्रवनांक (मेल्टिंग पॉइंट) नही होता है। सामान्यतः काँच सिलिका तथा सोडियम एवं कैल्सियम के सिलिकेटों का एक अक्रिस्टालीये, पारदर्शक या अल्पपारदर्शक समांगी मिश्रण होता है।
यधपि काँच ठोस दिखता है, किन्तु वास्तव में यह कोई ठोस नही होता है। काँच को अतिशीतलित द्रव्य कहते है। किसी द्रव्य का उसके हिमांक (फ्रीजिंग पॉइन्ट) के नीचे अथवा सम्बद्ध ठोस के द्रवनांक के नीचे बिना किसी ठोस के बने ठंडा किया जा सकता है।
इसप्रकार , वैसे द्रव्य जो अपने हिमांक के नीचे ठंडा किये जा सकते हैं, अतिशीतलित द्रव्य कहलाते है। ये द्रव काफी स्थायी होते हैं लेकिन ठोस की अल्पमात्रा भी इसमें नही होता हैं।
काँच के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले कच्चे पदार्थ
1.अम्लीय ऑक्साइड:- काँच में अम्लीय ऑक्साइड सिलिका प्रदान करने के लिए रेत, फ्लीट या क़वार्टज़ का उपयोग किया जाता है। कभी कभी विशेष तरह के काँच के निर्माण के लिए बोरोन ट्राई- ऑक्साइड, बोरिक एसिड या बोरेक्स अथवा सुहागा के रूप में तथा फॉस्फोरस पेंटाऑक्साइड का उपयोग कैल्शियम फॉस्फेट के रूप में होता है।
2. क्षारकीय ऑक्साइड :- काँच में क्षारकीय कैल्शियम ऑक्साइड (CaO ) मिलाने के लिए चूनापत्थर(CaCO3), सोडियम ऑक्साइड(Na2O) के लिए सोडा राख(soda ash, Na2CO3) का उपयोग किया जाता हैं। लेड ऑक्साइड के लिए लिथार्ज़ (pbO2) अथवा सिंदूर प्रयुक्त होता है।
3.रंगनाशक:- काँच में लोहे की अशुद्धियों के कारण हल्का रङ्ग आ जाता है। जिसे दूर करने के लिए सिलेनियम(Se), मैंगनीज़ डाइऑक्साइड(MnO2) अथवा पोटेसियम नाइट्रेट(KNO3) मिलाये जाते है।
4.क्युलेट(Cullet):- इसे मिलने से काँच के गलने में आसानी होती है।
रंगीन काँच के बनाने के लिए इसे बनाते समय पिघले हुए काँच में धातु लवणों की कुछ मात्रा मिला देते है। भिन्न भिन्न रङ्ग के काँच के लिए भिन्न भिन्न लवणों का प्रयोग करते है।
रङ्ग लवण
बैगनी -नीला रङ्ग का काँच के लिए – कोबाल्ट ऑक्साइड
पीला रङ्ग का काँच के लिए – फेरिक ऑक्साइड
लाल रङ्ग का काँच के लिए – सोना,सिलेनियम,क्यूप्रस
ऑक्साइड
दूधिया रङ्ग का काँच के लिए। – टिन ऑक्साइड
बैंगनी रङ्ग का काँच के लिए – मैंगनीज़ और निकेल ऑक्साइड
चटक लाल रङ्ग का काँच के लिए – कैडमियम सल्फाइड
नीला रङ्ग का काँच के लिए – क्यूप्रिक ऑक्साइड
हरा रङ्ग का काँच के लिए – फेरस या क्रोमिक ऑक्साइड
माणिक्य लाल रङ्ग काँच के लिए – गोल्ड क्लोराइड