कन्फ्यूसियस एक महानतम दार्शनिक
कन्फ्यूशियस (551-478 ई० पू०)
कन्फ्यूशियस सामन्तशाही युग का एक महानतम दार्शनिक था। उसका जन्म 28 सितंबर, 551 ई.पू. में लू राज्य के चू-फू (Chu-Fu) में हुआ था। बचपन से ही उसे कठोर परिश्रम करना पड़ा। घर पर ही वह बच्चों को पढ़ाता था। वह चरित्र-निर्माण पर बड़ा बल देता था। उसके दार्शनिक सिद्धान्त और असाधारण बुद्धि से कमजोर विद्यार्थी बहुत घबड़ाते थे।

कन्फ्यूशियस ने सरकारी नौकरी भी की। वह चुंग तु शहर का मुख्य दंडाधिकारी नियुक्त किया गया। अपराध दमन में उसे काफी सहायता मिली। उसने अपने नगरवासियों के लिए यह निश्चित कर दिया था कि उन्हें क्या भोजन करना चाहिए, कैसे वस्त्र पहनना चाहिए तथा किस प्रकार के मकानों में रहना चाहिए (उसके सुधारों को देखकर कुछ स्वार्थी सामन्तों को ईर्ष्या हुई और वे उसके विरोधी बन गए। अंत में कन्फ्यूशियस ने इस्तीफा दे दिया। वह चौदह वर्षों तक एक ऐसे शासक की खोज में रहा, जो उसको अपना गुरु मानता और उसके सिद्धांतों के अनुकूल शासन चलाता। परन्तु उसे ऐसा कोई शासक नहीं मिला।
तब निराश होकर उसने जीवन के अन्तिम पाँच-छह वर्ष चीनी साहित्य के अध्ययन में लगाया। 478 ई० पू० में उसका देहान्त हो गया।
उपदेश : कन्फ्यूशियस के उपदेश बड़े ही सरल और व्यावहारिक थे। वह धर्मप्रवर्तक की अपेक्षा समाज-सुधारक था। वह समाज के प्रचलित दोषों को दूर करना चाहता था।
वह कहता था, “जिस व्यवहार की अपेक्षा तुम औरों से अपने प्रति नहीं करते, उसकी तुम स्वयं दूसरे के प्रति नहीं करो। तुम स्नेह सभी लोगों से करो परन्तु मित्रता अपने बराबर वालों से करो।
” उसके उपदेश थे- अपने पूर्वजों की पूजा करो, गुरुजनों को शांति और-विश्राम दो तथा अपने मित्र के प्रति सच्चा और ईमानदार बनों। प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन करे। कन्फ्यूशियस वैयक्तिक जीवन में संयम, निष्ठा आदि पर विशेष ध्यान देता था। अनुशासन, ईमानदारी, शुद्ध आचरण उसके उपदेश के मूलमंत्र थे। उसने बतलाया कि श्रेष्ठ मनुष्य में तीन गुणों का होना आवश्यक है – प्रतिभा, साहस और दूसरों के प्रति कल्याण की भावना।
अपने जीवन के 22 वे वर्ष उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की थी।
जिसमे वैसे ही विद्यर्थियों की शिक्षा दी जाती थी जो सदा जीवन व्यतीत करने में विश्वास करते थे और राज्य का संचालन नियमपूर्वक एवं कर्तव्यनिष्ठा से करना चाहते थे।
कन्फ्यूशियस राजतंत्र का समर्थक था। वह सर्वसाधारण को शासन कार्य के लिए अयोग्य समझता था। उसका कहना था कि शासन कुलीनों को हाथों में होना चाहिए। किन्तु, सम्राट परोपकारी हो और उसे उद्योग-धंधों को प्रोत्साहन देना चाहिए। उसके विचार में शाशक प्रशंसनीय है जो घमंडी न हो, अपनी प्रजा के सुखी रखे और प्रजा पर कर का बोझ न डाले। उसने सरकारी कर्मचारियों के लिए कुछ नियम निश्चित किए,
जैसे –
(क) अपना चरित्र अच्छा रखो,
(ख) योग्य व्यक्तियों का आदर करो,
(ग) सभी के प्रति दया करो,
(घ) राजमंत्रियों का आदर करो,
(ङ) जन-कल्याण के कार्यों में सहयोग दो
(च) विदेशियों के साथ अच्छा व्यवहार करो,
(छ) साधारण जनता के साथ अच्छा व्यवहार करो,
(ज) अच्छे कार्यों को प्रोत्साहन दो एवं
(झ) राजा और राज्य की भलाई पर ध्यान रखो।
समकालीन चीन पर कन्फ्यूशियस के उपदेशों का बड़ा प्रभाव पड़ा। समाज में कैसे रहना चाहिए, अपने से बड़ों या छोटों के साथ परिवार में और उसके बाहर कैसे बरतना चाहिए, इसी पर उसका विशेष ध्यान था। तत्कालीन अराजक अवस्था में उसके उपदेश हितकर साबित हुए। अनेक लोग उसके शिष्य बन गये। उसके दर्शन के प्रचार के लिए जगह-जगह पर स्कूल खोले गए। काफी दिनों तक उसके उपदेश सरकारी पदाधिकारियों के लिए मार्गदर्शन करते रहे।