कण्व वंश
विष्णुपुराण के अनुसार शुंगवंश का अन्तिम शासक देवभूति अपने मन्त्री क वसुदेव द्वारा मारा गया। ‘विष्णुपुराण’ और ‘हर्षचरित’ के अनुसार देवभूति व्यसनी कण्व वसुदेव ही कण्ववंश का संस्थापक था। कण्ववंश के राजा धर्मानुकूल शासन करते थे ब्राह्मण- पुनरुद्धार – नीति का कण्ववंशे से भी अक्षरश: अनुसरण किया। यह भी ब्राह्मणवंश था। इस वंश का शासन ई०पू० ७२ से ई०पू० २७ तक रहा।
पुराणों के अनुसार कण्ववंश के राजाओं के नाम और उनका समय इस प्रकार है
वसुदेव – ९ वर्ष
भूमिमित्र – १४ वर्ष
नारायण – १२ वर्ष
सुशर्मा – १० वर्ष कुल ४५ वर्ष।
मगध में कण्ववंश के पतन से गुप्तवंश के उत्थान तक के इतिहास का निर्माण अपने आपमें एक कठिन कार्य है । सातवाहनों का मगध पर आधिपत्य था अथवा नहीं. यह एक विवादास्पद प्रश्न है गया में महाराज त्रिकमल का शासन था । लिच्छवियों और पाटलिपुत्र के बीच भी कुछ सम्बन्धों का उल्लेख मिलता है। गया से प्राप्त एक मुहर पर मौर्यकालीन ब्राम्ही लिपी में मौखरी-सामंतों का उल्लेख मिलता है। ये शायद मौर्य,शुंग या कण्व राजवंश के अधीनस्थ शासक रहे होंगे। कुछ क्षेत्रों में मित्र वंश के शासन का उल्लेख मिलता है।
शुंगवंश –
पुष्यमित्र ३६ वर्ष – (ई० पु. १२०-१४४) अग्निमित्र ८ वर्ष ( ई०पू० १४४-१३६) वसुज्येष्ठ या सुज्येष्ठ ७ वर्ष -( ई०पू० १३६-१२९)
वसुमित्र १० वर्ष- (ई०पू० १२९-११९)
आद्रक अथवा ओद्रक २ वर्ष -( ई०पू० ११९-११७) पुलिन्दक ३ वर्ष-( ई०पू० ११७-११४) घोष- ३ वर्ष -( ई०पू० ११४-१११) वज्रमित्र १ वर्ष – (ई०पू० १११-११०) भागवत- ३२ वर्ष – ई०पू० ११०- ७८) देवभूति-१० वर्ष – (ई०पू० ७८-६८)
कण्व वंश वासुदेव -९ वर्ष – (ई०पू० ६८-५९) भूमिमित्र १४ वर्ष – (ई०पू० ५९-४५) नारायण १२ वर्ष -( ई०पू० ४५- ३३) सुशर्मन् १० वर्ष – (ई०पू० ३३-२३)
(i) जैनग्रन्थों में पुष्यमित्र के शासनारूढ़ होने की तिथि ई०पू० २०५ है सम्भवतः यह उसके अवन्ती में शासनारूढ़ होने की तिथि है ।
(ii) पांचालदेश के माने जानेवाले मित्र-राजाओं के सिक्के पांचाल के अलावा अवध से पाटलिपुत्र तक मिले हैं। ब्रह्ममित्र तथा इन्द्रमिव-जैसे राजाओं के नाम भी मिलते हैं। ये नाम बोधगया के स्तम्भ में भी मिले हैं। मथुरा, पांचाल और कुम्हार के सिक्कों में भी इनके नाम उत्कीर्ण हैं। ब्लोक, रंप्सन और मार्शल इसे कौशिकीपुत्र इन्द्राग्निमित्र मानते हैं। मालविकाग्निमित्रम् की कोशिकी वरार के राजा की बहन थी। बरार के राजकुमार की एक बहन अग्निमित्र की पत्नी थी। राजा ब्रह्ममिव की पत्नी का नाम नागदेवी था। जनग्रन्थों में बलमित्र, भानुमित राजानों को पुष्यमित्र का उत्तराधिकारी कहा गया है । बरुआ ने मित्र-राजाओं की एक सूची बनायी है। इसमें बृहत्स्वातिमित्र, इन्द्राग्निमित्र, ब्रह्ममित्र, वृहस्पतिमित्र, विष्णुमित्र, वरुणमित्र, धर्ममित्र तथा गोमिन राजाओं के नाम मिलते हैं। अलान के अनुसार ब्रह्ममित्र, दृढ़मित्र, सूर्यमित्र और विष्णुमित ने गोमित्र के समान सिक्के जारी किये थे । इन्द्राग्निमित्र, ब्रह्ममित्र तथा बृहस्पतिमित्र मगधराज्य से सम्बद्ध थे। शेष मथुरा और कौशाम्बी से सम्बद्ध थे।