ऋग्वेद और वैदिक साहित्य
वेद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत ‘विद’ से हुई है, जिसका अर्थ है ” ज्ञान की पराकाष्ठा। वेदों और उपनिषद को ‘ श्रुति ‘ भी कहते है, जिसका मतलब ‘ देव प्रदत्त ज्ञान ‘।
पुराणों में भी आर्यो के संबंधित चर्चा की गई हैं। आर्यो के दो प्राचीन ग्रंथ ‘ जेन्द अवस्था ‘ और ‘ ऋग्वेद ‘ क्रमशः ईरान और भारत में मिले है। एशिया माइनर में बोगजकोई नमक स्थान पर प्राप्त एक अभिलेख में मित्र, वरुण,इन्द्र और नासात्य नमक वैदिक देवताओं का ज़िक्र है। मिस्त्र में एल-अर्मना नामक स्थान और मिट्टी के टुकड़े मिले हैं जिनमे बेबीलोनियन लिपि में कुछ लेख मिले हैं जो वैदिक नामों से मिलते हैं- जैसे :- यशदत्त, अर्ज़विय, अर्मना, सुतर्ग इत्यादि।
भारत मे वैदिक आर्यो का अध्ययन ऋग्वेद के आधार पर ही किया जाता है। आर्यो ने अपने वक्तव्यों (उच्छवासों) को ऋचायें के रूप में प्रकट किया करते थे।
वेद चार है। 1.ऋग्वेद 2.यजुर्वेद 3.सामवेद 4.अथवर्वेद
प्रथम तीन वेदों ( ऋग्वेद,,यजुर्वेद,सामवेद) को वेदत्रयी कहा जाता है।
ऋग्वेद आर्यो का प्राचीनतम (1500-1000 ई.पू.) ग्रंथ है। आर्यो के द्वारा लिखित ऋचायें पूर्व में असंकलित थी। भारत मे इन ऋचायें का संकलन ऋग्वेद में ही शुरू किया गया था।
ऋग्वेद के सभी सूक्त दस मंडलो तथा कभी कभी अष्टको में संगठित किया गया है। इन सूक्तों के रचयिता निम्नलिखित विद्वान विश्वामित्र, वामदेव,अत्रि,भारद्वाज,गुत्समद और वशिष्ठ प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त घोषा, शची, लोपमुद्रा,पौलोमी और कांझावृति स्त्रियों का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
ऋग्वेद में कुल सूक्त की संख्या 1028 है और श्लोकों की संख्या 10,462 है।
ऋग्वेद के दूसरा तथा सातवाँ मंडल प्राचीनतम एवं प्रथम और दशम मंडल नवीनतम है।
हिंदुओ का सबसे पवित्र मंत्र ” गायत्री मंत्र ‘ जो सूर्य देवता “सविता’ को समर्पित है, ऋग्वेद में ही संकलित है।
ऋग्वेद में प्रमुख रूप से इन्द्र, अग्नि, वरुण, मित्र आदि देवों की स्तुति की गयी है।
ऋग्वेद में सबसे महत्वपूर्ण देवता इन्द्र है जिन्हें पुरन्दर कहा गया है।