आवेश, विभव और विभवांतर क्या होते हैं ?
उर्ज़ा के अनेकों प्रकार होते हैं; जैसे- रासायनिक उर्ज़ा, यांत्रिक उर्ज़ा,ध्वनि उर्ज़ा, प्रकाश उर्ज़ा, उष्मीय उर्ज़ा,विधुत उर्ज़ा इत्यादि। इन सभी ऊर्जा में विधुत उर्ज़ा बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका रूपांतरण प्रकाश, उष्मा, ध्वनि में असानी से हो जाता है।
मनुष्य जब कोई यांत्रिक कार्य करता है जैसे ‘- उछलना, कोई वज़न उठाना आदि तो वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत कार्य करता है। और यह कार्य उस वज़न में स्थितिज़ उर्ज़ा के रुप मे एकत्रित रहता है।
आवेश :-
इस पृथ्वी पर जितने भी पदार्थ है उनके दो आवेश होते है। एक आवेश ‘+’ (पॉजिटिव)और उसी प्रकार दूसरा आवेश ‘-‘ (नेगेटिव) है।
आवेश का मात्रक कूलंब (Q) होता है। समय का मात्रक सेकंड (S)है।
I = Q/t ; इसमे ” l ” =विधुत धारा
आवेश : प्रसिद्ध वैज्ञानिक थेल्स (thales) ने बताया की जब काँच की छड़ को रेशम के कपडे से रगड़ा जाता है तो कांच की छड़ छोटे छोटे कणों , कागज़ के टुकड़े इत्यादि को चिपकाना शुरू कर देता है , घर्षण प्रक्रिया (रगड़ना) के बाद पदार्थ सामान्य की तुलना में कुछ अलग व्यवहार प्रदर्शित करता है और पदार्थ के इस विशेष गुण को ‘विधुत आवेश ‘ नाम दिया गया।
कांच की छड़ को जब रेशम के कपडे से रगड़ा जाता है तो कांच की छड़ पर धन आवेश तथा रेशम के कपडे पर ऋण आवेश आ जाता है।
जब हम किसी आवेश पर कुछ और वैसा ही आवेश लेकर रखते है तो उस आवेश और लाये गए आवेश के मध्य प्रतिकर्षण बल के विरूद्ध कार्य किया जाता हैं। और यह कार्य आवेश की स्थितिज़ उर्ज़ा के रूप में एकत्र रहती है। आवेश की इसी स्थितिज़ उर्ज़ा के रूप मे आवेश के कारण किसी बिंदु पर विभव की परिभाषा दी जाती हैं। अथार्त एक धन आवेश को अनंत से किसी बिंदु तक लाने में किये गए कार्य को उस बिन्दु पर विभव कहते हैं। विभव एक अदिश राशि है। इसका एस. आई मात्रक वोल्ट (V) होता है।
** किसी बिंदु पर एक वोल्ट (V) विभव का अर्थ होता है कि एक कूलंब आवेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में एक जुल उर्ज़ा का कार्य हुआ है।
आवेश की गति
किसी चालक के कोई बिंदु ओर गति के लिए स्वतंत्र धन आवेश उच्च विभव से निम्न विभव की ओर गति करता है।
** गति के लिये स्वतंत्र धन आवेश उच्च विभव से निम्न विभव की ओर जाता है। चित्र के द्वारा समझे :-

एक स्थिर धन आवेश ” क ‘ किसी बिंदु पर दर्शाया गया है। एक अन्य धन आवेश ” ख ” गति के लिए स्वतंत्र है। आवेश ” क ” के द्वारा लगाया गया प्रतिकर्षण बल के कारण आवेश ” ख ” , आवेश ‘” क ” से विपरीत दिशा में दूर जाएगा। जैसे जैसे आवेश ” ख ” दूर जाता है वैसे वैसे विभव का मान घटता जा रहा है।
इसीप्रकार गति के स्वतंत्र ऋण आवेश निम्न विभव से उच्च विभव की ओर जाता है।
चित्र के द्वारा समझे :-

गति के लिए स्वतंत्र एक ऋण आवेश “N” आकर्षित होकर एक धन आवेश ” P ” की ओर बढ़ता है।
पृथ्वी का विभव शून्य माना जाता है। पृथ्वी की अपेक्षा जिस वस्तु का विभव अत्यधिक होता है।उसका विभव धनात्मक और जिस वस्तु का विभव कम होता है उसका विभव ऋणात्मक माना जाता है।
विधुत धारा :- विधुत आवेश की प्रवाह की दर को ही विधुत धारा कहते है। I = Q/t
इसमे I = विधुत धारा का सिंबल है
Q= आवेश का मात्रक कूलंब का सिम्बल है।
t = समय का मात्रक है।
यानी ” t ” समय मे जितने कूलंब विधुत आवेश की प्रवाह किसी बिंदु से होती है उसे ही विधुत धारा कहा जाता है। ” t ” जो समय का मात्रक है उसकी सबसे छोटी इकाई में से एक एक छोटी इकाई सेकंड है। सेकंड का सिंबल ” s ” है।
यानी I = Q/t सूत्र में ” t ” समय में जितना कूलंब आवेश बहती है उसे ही विधुत धारा (I) का प्रवाह दर कहते है।
** एम्पियर
यहाँ पर ‘ t ‘ के जगह पर समय का एक मात्रक सेकंड (s) को रखने पर हम यह कह सकते है कि एक सेकंड में जितने कूलंब (Q) आवेश की प्रवाह होती है उसे एम्पियर कहा जाता हैं। जिसका सिंबल Amp. है।
**विभवांतर :-

किसी आवेश के कारण किन्ही दो बिंदुओं के बीच विभवांतर उन दो बिंदुओं पर विभव का अंतर कहलाता है। यह निम्न विभव वाले बिंदु से उच्च विभव वाले बिंदु तक एकांक धन आवेश को लाने में किये गए कार्य के बराबर होता हैं। इसका S.I मात्रक वोल्ट (V) होता है।